कांग्रेस रात्रिभोज में Shiv kumar की अनुपस्थिति से नेतृत्व पर बढ़ीं अटकलें

Shiv kumar

कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर उठी नई अटकलें: Shiv kumar की अनुपस्थिति और सिद्दारमैया की रणनीतियाँ

Shiv kumar: कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति एक बार फिर से चर्चा में है। हाल ही में 02 जनवरी को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया द्वारा आयोजित एक अनौपचारिक रात्रिभोज के बाद राजनीतिक गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। इस भोज में राज्य के कई महत्वपूर्ण मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल हुए, लेकिन उपमुख्यमंत्री डी.के. Shiv kumar इस बैठक से बाहर रहे, क्योंकि वह उस समय परिवारिक छुट्टी पर तुर्की में थे। Shiv kumar की अनुपस्थिति ने नेतृत्व पर बढ़ते दबाव को लेकर चर्चाओं को हवा दी है।

रात्रिभोज की बैठक और उसके राजनीतिक संकेत

विवादास्पद रात्रिभोज को लेकर सियासी हलकों में कयास लगाए जा रहे हैं कि यह बैठक सिद्दारमैया और डी.के. Shiv kumar के बीच बढ़ते राजनीतिक तनाव को संतुलित करने के लिए एक रणनीतिक कदम था। यह बैठक एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों के मंत्रियों के साथ आयोजित की गई थी, जो कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख समर्थक समूह माने जाते हैं। इन समुदायों का समर्थन पार्टी के लिए महत्वपूर्ण है, और इस बैठक को उनकी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।

हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने मीडिया से कहा था कि यह बैठक राजनीति से परे थी और केवल एक अनौपचारिक भोज था, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस रात्रिभोज के माध्यम से पार्टी के भीतर बिखरी हुई आवाजों को समेटने और एकजुट करने की कोशिश की गई। विशेष रूप से यह बैठक उन मंत्रियों द्वारा की गई, जो Shiv kumar के बढ़ते प्रभाव के प्रति चिंता जता रहे थे और उनकी राजनीतिक स्थिति को चुनौती देने के लिए एकजुट हो रहे थे।

Shiv kumar की अनुपस्थिति और उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ

रात्रिभोज की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि डी.के. Shiv kumar इसमें अनुपस्थित रहे। उनकी अनुपस्थिति ने पार्टी के भीतर उनके बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। Shiv kumar की छवि कर्नाटक कांग्रेस में एक मजबूत नेता के रूप में उभर रही है, लेकिन सिद्दारमैया के नेतृत्व को चुनौती देने के बावजूद उन्हें पार्टी में अपनी स्थिति को पूरी तरह से मजबूत नहीं कर पाना है।

सिद्धारमैया और Shiv kumar के बीच नेतृत्व संघर्ष

कर्नाटक कांग्रेस के भीतर सत्ता-साझाकरण की अनिश्चितता ने कई बार सिद्दारमैया और डी.के. Shiv kumar के बीच संघर्ष को जन्म दिया है। जबकि सिद्दारमैया अपने कार्यकाल को पूरा करने की इच्छा जताते हैं, Shiv kumar के नेतृत्व के प्रति उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षाएँ अक्सर सार्वजनिक रूप से सामने आती रही हैं। इस संघर्ष को लेकर पिछले कुछ महीनों में कई बार दोनों नेताओं के बीच सियासी बयानबाजी भी देखने को मिली है।

विशेष रूप से, Shiv kumar ने अक्सर अपनी योजनाओं और कार्यशैली के माध्यम से अपनी सशक्त छवि बनाने की कोशिश की है। वहीं, सिद्दारमैया ने भी अपनी सरकार की ताकत को स्थापित करने के लिए प्रयास किए हैं, जो उन्हें नवंबर 2023 में हुए विधानसभा उपचुनावों में मिली जीत से और मजबूत हुआ है। कर्नाटक की राजनीति में इन दोनों नेताओं के बीच का यह प्रतिद्वंद्विता अब पार्टी के अंदर एक चुनौती बन चुकी है।

Shiv kumar की भूमिका को लेकर बढ़ती चर्चा

रात्रिभोज के बाद की चर्चाओं में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या Shiv kumar को राज्य कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार, बैठक के दौरान कई मंत्रियों ने इस भूमिका में रुचि दिखाई, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया कि वे अपने मौजूदा कार्यभार को बनाए रखें। इस चर्चा ने यह संकेत दिया है कि पार्टी के भीतर नेतृत्व के संदर्भ में बदलाव की संभावना पर विचार हो सकता है।

वहीं, विपक्षी नेताओं ने इस बैठक को लेकर अपनी राय व्यक्त की है। आर. अशोक, जिन्होंने बैठक के बाद आरोप लगाया कि कांग्रेस में आंतरिक असंतोष बढ़ रहा है, ने दावा किया है कि कांग्रेस सरकार कभी भी गिर सकती है। उनका यह भी कहना था कि कई कांग्रेस विधायक भाजपा से संपर्क कर रहे हैं, जिससे सरकार की स्थिरता पर संकट उत्पन्न हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि सिद्दारमैया की कमजोर नेतृत्व शैली कांग्रेस के भीतर एक नई चुनौती बन सकती है।

राजनीतिक दांव-पेंच और भविष्य की रणनीतियाँ

कर्नाटक के राजनीतिक परिदृश्य में सिद्दारमैया और Shiv kumar के बीच का यह संघर्ष पार्टी के भविष्य को प्रभावित कर सकता है। जहां एक ओर Shiv kumar अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते, वहीं सिद्दारमैया ने भी अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए पार्टी के भीतर समर्थन जुटाने की कोशिश की है।

इसके साथ ही, कर्नाटक में आगामी चुनावों और पार्टी की रणनीतियों को लेकर कई समीक्षकों का कहना है कि कर्नाटक कांग्रेस को बाहरी दबावों और आंतरिक विरोधों के बावजूद अपनी ताकत बनाए रखने के लिए एकजुटता और समझौते की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, भाजपा भी इन परिस्थितियों का फायदा उठाने के लिए तैयार हो सकती है, जिससे कांग्रेस को आगामी समय में और भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

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