Udaipur में महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच एक नई संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई है। मेवाड़ के 77वें दीवान के रूप में विश्वराज सिंह मेवाड़ की ताजपोशी के बाद से यह विवाद और भी गहरा गया है। यह टकराव उस समय शुरू हुआ जब विश्वराज सिंह चित्तौड़गढ़ किले में ताजपोशी की परंपरा के बाद, उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित धुनी माता के मंदिर में दर्शन करने के लिए अपने लगभग तीन हजार समर्थकों के साथ रवाना हुए। उनके पिता महेंद्र सिंह मेवाड़ की 10 नवम्बर 2024 को मृत्यु के बाद यह ताजपोशी की गई थी।
ताजपोशी और विवाद का प्रारंभ
Udaipur: महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद, उनके बड़े बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ को मेवाड़ के 77वें दीवान के रूप में ताज पहनाया गया। हालांकि, यह ताजपोशी उत्सव के बजाय वंशजों के बीच एक नए विवाद का कारण बन गई। जब विश्वराज सिंह ताजपोशी की परंपरा के बाद धुनी माता के मंदिर के दर्शन करने जा रहे थे, तब उनके समर्थकों और विरोधियों के बीच तनाव बढ़ने लगा। इस पूरे घटनाक्रम के बाद कोर्ट ने सिटी पैलेस के रास्ते को कुर्क कर दिया और एक रिसीवर नियुक्त किया, ताकि इस विवाद को सुलझाया जा सके।
वंशजों के बीच वर्चस्व की लड़ाई
Udaipur: महाराणा प्रताप के वंशजों के बीच यह वर्चस्व की लड़ाई एक लंबे समय से चली आ रही है। हालांकि, जब विश्वराज सिंह मेवाड़ की ताजपोशी की गई, तो इस विवाद ने एक नया मोड़ लिया। उनके समर्थकों ने यह दावा किया कि ताजपोशी के बाद वह अब मेवाड़ के पूरे परिवार के अधिकारों के निर्वहन के लिए जिम्मेदार हैं। जबकि कुछ विरोधी उनके खिलाफ उठ खड़े हुए, यह मामला अदालत तक पहुंचने में देर नहीं लगी।
सिटी पैलेस का रास्ता और कोर्ट का आदेश
Udaipur: विश्वराज सिंह द्वारा धुनी माता के मंदिर में दर्शन के लिए सिटी पैलेस में प्रवेश करने के दौरान, यह घटनाक्रम और भी जटिल हो गया। सिटी पैलेस में स्थित कुछ हिस्सों के नियंत्रण को लेकर विवाद उठ खड़ा हुआ। कोर्ट ने इस मामले में दखल देते हुए सिटी पैलेस के रास्ते को कुर्क कर दिया और एक रिसीवर नियुक्त किया, ताकि विवाद को कानूनी तौर पर सुलझाया जा सके। यह कदम इसलिए उठाया गया, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच स्थिति बिगड़ती जा रही थी और कानून व्यवस्था बनाए रखने की जरूरत महसूस हो रही थी।
मेवाड़ के इतिहास और परंपरा में विवाद
मेवाड़ का इतिहास और परंपरा बहुत ही गौरवशाली है, खासकर महाराणा प्रताप की वीरता और उनके संघर्षों के कारण। लेकिन इस पारंपरिक घराने में आजकल जो भी विवाद हो रहा है, वह इतिहास के उस गौरवमयी पक्ष से दूर है। पिछले कुछ दशकों से, मेवाड़ के वंशजों के बीच इस तरह के विवाद सामने आते रहे हैं, जिनका असर अब फिर से देखने को मिल रहा है।
Udaipur: विवाद न केवल एक परिवार के भीतर बल्कि पूरे मेवाड़ क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया है। जहां एक ओर विश्वराज सिंह के समर्थक उन्हें उनके पिता के काम को आगे बढ़ाने और मेवाड़ की परंपरा को सहेजने का जिम्मा सौंप रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य सदस्य उनके खिलाफ खड़े हो गए हैं। इन विवादों को सुलझाने के लिए सख्त कानूनी उपायों की आवश्यकता है।
रानी की ओर से विरोध
Udaipur: विश्वराज सिंह की ताजपोशी के बाद उनके परिवार की महिला सदस्य, रानी सुमित्रा देवी ने भी कुछ असहमति जताई। उनका मानना था कि ताजपोशी के दौरान कुछ पारंपरिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था, और इसने पूरे परिवार की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। रानी के इस विरोध ने विवाद को और भी गहरा कर दिया, और अब यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
मेवाड़ की सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्ता
Udaipur: मेवाड़ क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्वता को देखते हुए यह विवाद और भी जटिल हो गया है। मेवाड़ का इतिहास महाराणा प्रताप के साथ जुड़ा हुआ है, जिनकी वीरता ने भारत के इतिहास में अमिट छाप छोड़ी है। आज भी लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, और उनका वंशज होने के नाते विश्वराज सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्य इस प्रतिष्ठान को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
इस मामले में यह सवाल उठता है कि क्या परिवार में शांति और सहयोग से यह विवाद सुलझेगा, या फिर कानूनी प्रक्रिया के चलते यह और भी जटिल होगा।
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