शरद पूर्णिमा मतलब कार्तिक माह की शुरुआत या यूँ कहें की शरद ऋतू की शुरुआत, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार Sharad Purnima की रात चांद की रौशनी में खीर रखने का विधान है जिसे अगले दिन प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है ! ये मान्यता आज की नहीं है बल्कि सदियों पुरानी है ! सबसे पहले तो हम आपको बताते हैं की शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्त्व क्या है !

- शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है कहा जाता है की भगवान् श्री कृष्ण ने Sharad Purnima के दिन ही राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था और उस रास को देखने के लिए मन्त्रमुघ होते हुए चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत पास आगये थे और अपनी सभी कलाओं से अमृत बरसाने लगे थे तभी से हर शरद पूर्णिमा के दिन पृथ्वी के नज़दीक आ कर चंद्र देव अमृत की बौछार करते है जो की दूसरे शब्दों में स्वास्थ्य की बौछार कहलाती है !
- चन्द्रमा की रौशनी में और उसकी किरणों में औषधीय शक्तियां होती है और शरद पूर्णिमा के दिन यह शक्ति और बढ़ जाती है इसलिए कहते हैं की शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से अमृत बरसता है ! चंद्र देव को औषधियों का देवता कहा गया है और दूसरी तरफ चंद्र को मन का देवता भी कहा गया है इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को पाजिटिविटी यानि सकारात्मकता बढ़ाने वाली भी कहा जाता है क्यूंकि शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है इसलिए कहा जाता है की औषधियों का प्रभाव बढ़ जाता है तो तन के स्वास्थ्य के साथ मन का स्वास्थ्य भी नकारात्मकता से सकरात्मक की और बढ़ जाता है

- Sharad Purnima के अगले दिन खीर खाने की धार्मिक मान्यता भी है और वैज्ञानिक मान्यता भी है वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार दूध में लैक्टिक एसिड होता है और चन्द्रमा की किरणों में कई तरह के लवण और विटामिन होते है दूध का लेक्टिक एसिड इन लवणों को शोषित कर लेता है और चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी सुलभ हो जाती है ! और खीर बहुत पौष्टिक हो जाती है जो की पुनर्योवन, शक्ति और इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है !