क्या वक्फ 600 परिवारों को बेदखल करेगा? कैसे एक गांव बना BJP का सियासी हथियार?

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“वक्फ (संशोधन) बिल 2025: मुनंबम विवाद और BJP की सियासी चाल, केरल में बढ़ता धार्मिक ध्रुवीकरण”

BJP: वक्फ (संशोधन) बिल 2025 के संसद से पारित होने के बाद से केरल में एक तात्कालिक विवाद छिड़ गया है, जो न केवल कानूनी बल्कि राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा भी बन चुका है। इस विवाद का केंद्र मुनंबम गांव है, जहां केरल के एर्नाकुलम जिले में 600 परिवारों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है।

मुनंबम के इस भूमि विवाद को BJP ने एक बड़ा सियासी हथियार बना लिया है, जिसका समर्थन वक्फ बिल के पक्ष में किया जा रहा है। यह विवाद BJP के लिए केरल में धार्मिक ध्रुवीकरण के एक नए अवसर के रूप में उभरा है, जबकि विपक्ष इसे धार्मिक आधार पर लोगों को बांटने की साजिश मान रहा है।

मुनंबम का भूमि विवाद: केरल का एक छोटे से गांव में बड़ा संघर्ष

मुनंबम, एक तटीय गांव है, जहां ज्यादातर ईसाई समुदाय के लोग पीढ़ियों से रह रहे हैं। यहां का भूमि विवाद 1902 से शुरू होता है, जब त्रावणकोर शाही परिवार ने एक व्यापारी को जमीन पट्टे पर दी थी। 1950 में, इस जमीन को फारूक कॉलेज को दान कर दिया गया था, और इसे वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत किया गया। 1995 में वक्फ अधिनियम लागू होने के बाद, इस विवाद ने नया मोड़ लिया। 2019 में, केरल वक्फ बोर्ड ने इस जमीन को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित कर दिया, जिसके बाद इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग ले लिया।

BJP ने मुनंबम को क्यों बनाया सियासी मुद्दा?

वक्फ (संशोधन) बिल 2025 पर संसद में बहस के दौरान BJP ने मुनंबम के भूमि विवाद को बार-बार उठाया। BJP ने इस विवाद को वक्फ बिल के समर्थन में एक ठोस उदाहरण के रूप में पेश किया और इसे “भूमि जिहाद” का हिस्सा करार दिया। पार्टी ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड अपनी अनियंत्रित शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है, और इसके द्वारा कब्जा की जा रही संपत्ति पर पीढ़ियों से रह रहे लोग अपना हक खो सकते हैं। इसके बाद BJP ने वक्फ संपत्तियों की शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए इस बिल का समर्थन किया।

विपक्ष और केरल सरकार की स्थिति

BJP के इस रुख के जवाब में, केरल सरकार और विपक्ष ने इस मुद्दे को सामाजिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के रूप में देखा है। केरल सरकार ने मुनंबम के निवासियों के पक्ष में खड़ा होकर कहा है कि यह मामला अदालत में विचाराधीन है और इसे हल किया जाना चाहिए। कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने BJP पर आरोप लगाया है कि वह इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इसे धार्मिक रूप से भड़काने की कोशिश कर रही है। केरल के विपक्ष के नेता वी. डी. सतीशन ने कहा कि BJP ने इस विवाद को गलत तरीके से जोड़ने की कोशिश की है, क्योंकि इस बिल का कोई पूर्वव्यापी प्रभाव नहीं होगा।

चर्च का रुख और BJP का सियासी फायदा

मुनंबम के विवाद में चर्च का समर्थन भी महत्वपूर्ण रहा है। केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल (केसीबीसी) ने मुनंबम के निवासियों के खिलाफ होने वाले संभावित निष्कासन का विरोध किया और वक्फ अधिनियम में बदलाव की मांग की। इस समर्थन को BJP ने ईसाई समुदाय के बीच अपनी स्थिति मजबूत करने के रूप में लिया, खासकर तब जब ईसाई समुदाय पारंपरिक रूप से कांग्रेस और वाम दलों का समर्थक रहा है। BJP ने इसे एक अवसर के रूप में देखा, जिससे वे केरल के ईसाई समुदाय में अपनी पैठ बढ़ा सकते थे।

मुस्लिम संगठनों का विरोध और विवाद का धार्मिक पहलू

वहीं, मुस्लिम संगठनों ने वक्फ (संशोधन) बिल 2025 का विरोध किया है। समस्त केरल जामियतुल उलमा ने इसे मुस्लिम विरोधी करार दिया और इस पर सवाल उठाए कि यह बिल संविधान के सेक्युलर मूल्यों के खिलाफ है। मुस्लिम नेताओं ने आरोप लगाया कि यह बिल धर्मनिरपेक्षता को कमजोर करने और धार्मिक सौहार्द को नष्ट करने की कोशिश है। इस विवाद ने धार्मिक आधार पर राजनीति को और जटिल बना दिया है, जिससे केरल की राजनीति में गहरा ध्रुवीकरण हो सकता है।

मुनंबम के निवासियों की स्थिति और संघर्ष

मुनंबम के 600 परिवारों के लिए यह सिर्फ भूमि विवाद नहीं है, बल्कि यह उनके घर और आजीविका की लड़ाई बन गई है। पिछले 173 दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे इन परिवारों को डर है कि वक्फ कानून के कारण उनकी जमीन पर से उनका मालिकाना हक छिन सकता है। इन लोगों ने अदालत में सरकार के फैसले को चुनौती दी है, और अब उनकी निगाहें अदालत के अंतिम फैसले पर हैं।

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