PM Modi का RSS मुख्यालय दौरा: 2024 चुनाव से पहले बीजेपी और संघ के रिश्तों की नई दिशा?
PM Modi ने रविवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय नागपुर का दौरा किया। इस दौरे को लेकर राजनीतिक हलकों में गहमा-गहमी का माहौल बन गया है, क्योंकि यह PM Modi के राजनीतिक सफर का महत्वपूर्ण मोड़ है। PM Modi ने इस मौके पर आरएसएस के संस्थापक डॉ. केबी हेडगेवार के स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की और संघ की तारीफ करते हुए इसे केवल एक संगठन नहीं, बल्कि “राजनीति की आत्मा” करार दिया। उनके इस बयान को 2024 के लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर संघ और बीजेपी के रिश्तों में एक नए अध्याय की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
PM Modi का सफर 1972 में आरएसएस प्रचारक के तौर पर शुरू हुआ था और 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने तक वह संघ के विचारों से प्रभावित रहे। PM Modi के अनुसार, आरएसएस का योगदान केवल उनके व्यक्तिगत राजनीतिक सफर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने कहा कि आरएसएस एक “अमर संस्कृति” का प्रतीक है और जो बीज 100 साल पहले बोया गया था, वह आज वट वृक्ष का रूप ले चुका है।
आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों को लेकर कभी भी सार्वजनिक तौर पर चर्चा होती रही है। कई बार यह आरोप भी लगाए गए कि बीजेपी ने आरएसएस से दूरी बनाने की कोशिश की, खासकर जब सरकार की नीति या रणनीतियों में कुछ अंतर दिखाई देने लगे। हालांकि, संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी हमेशा यह कहते आए हैं कि आरएसएस का राजनीतिक कामकाज में कोई दखल नहीं होता और उनका कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। बीजेपी और आरएसएस के रिश्तों को लेकर कभी भी कोई सार्वजनिक विवाद नहीं रहा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में संघ और पार्टी के बीच संबंधों में असहमति की चर्चाएं जरूर उठी हैं।
आरएसएस और बीजेपी के बीच संबंधों में उतार-चढ़ाव
2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान यह चर्चा जोर पकड़ चुकी थी कि आरएसएस और बीजेपी के बीच अनबन की स्थिति बन रही है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कह दिया था कि बीजेपी अब आत्मनिर्भर है और उसे आरएसएस की जरूरत नहीं है। इस बयान के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार इशारों-इशारों में बीजेपी को नसीहत दी, खासकर हिंदी बेल्ट में सीटों के नुकसान के बाद। हालांकि, संघ और पार्टी के बीच की दरार की अफवाहों को आरएसएस के वरिष्ठ नेता एचवी शेषाद्री ने खारिज किया था। उनका कहना था कि यह कोई डिबेट नहीं थी, बल्कि उन लोगों द्वारा फैलाए गए अफवाहें थीं, जो दोनों संगठनों को अच्छे से नहीं समझते।
बीजेपी-आरएसएस के रिश्तों में सुधार की प्रक्रिया
बीजेपी को हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में नुकसान के बाद, पार्टी ने फिर से आरएसएस से अपनी रिश्तों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए। आरएसएस की नसीहतों का असर पार्टी की रणनीतियों में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, और इसके बाद पार्टी ने संघ के संगठनों के साथ अधिक मिलकर काम करना शुरू किया। इस बार PM Modi का आरएसएस मुख्यालय दौरा इसी दिशा में एक बड़ा कदम है, जो संकेत देता है कि बीजेपी अपने वैचारिक स्रोत से दूरी नहीं बनाएगी, बल्कि आगामी चुनावों में संघ के सहयोग को और अहमियत देगी।
अगले कुछ महीनों में महत्वपूर्ण घटनाएँ
आने वाले दिनों में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ भी घटित होने वाली हैं। एक है बेंगलुरु में होने वाली बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक और दूसरी आरएसएस का शताब्दी वर्ष समारोह। इन दोनों आयोजनों में पार्टी और संघ के नेताओं के बीच विचार-विमर्श और संवाद की संभावना है, जिससे यह संकेत मिल सकता है कि दोनों संगठन भविष्य में अपने रिश्तों को किस दिशा में लेकर जाएंगे।
बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान किया जा सकता है, जो पार्टी की आगामी चुनावी रणनीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इन घटनाओं को देखते हुए PM Modi का आरएसएस मुख्यालय दौरा खास महत्व रखता है, क्योंकि यह इस बात का संकेत है कि मोदी सरकार और आरएसएस के रिश्ते एक बार फिर नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं।
संघ और बीजेपी के रिश्ते: चुनावी रणनीति या वैचारिक गठजोड़?
PM Modi के आरएसएस मुख्यालय दौरे को केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है, लेकिन यह भी एक वैचारिक गठजोड़ का हिस्सा हो सकता है। जब दोनों संगठन चुनावी जमीनी स्तर पर एक साथ काम करते हैं, तो उनके बीच समन्वय और समर्थन का महत्व और भी बढ़ जाता है। PM Modi ने अपने भाषण में आरएसएस के कार्यकर्ताओं की मेहनत की सराहना की और उनकी भूमिका को “समाज के लिए सेवा” के रूप में देखा। इससे यह स्पष्ट होता है कि संघ केवल बीजेपी के समर्थन तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय राजनीति और समाज के लिए भी एक मजबूत विचारधारा के रूप में काम कर रहा है।
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