भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो दर को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखने का निर्णय लिया है। तीन दिन की बैठक के बाद गवर्नर संजय मल्होत्रा ने जानकारी दी कि घरेलू अर्थव्यवस्था में मजबूती बनी हुई है, खासकर अच्छे मानसून और आगामी त्योहारी सीज़न को देखते हुए। हालांकि वैश्विक स्तर पर स्थितियाँ अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई हैं और नीति निर्माताओं के लिए संतुलन बनाए रखना कठिन है।
रेपो दर के साथ ही अन्य प्रमुख नीतिगत दरों में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है। स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी दर को 5.25 प्रतिशत और मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी दर को 5.75 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया है। इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर अनुमान को भी 6.5 प्रतिशत पर यथावत रखा गया है, जबकि खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया गया है।
आरबीआई इस साल फरवरी, अप्रैल और जून में तीन बार रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती कर चुका है। जून में इसे घटाकर 5.5 प्रतिशत किया गया था। गवर्नर ने बताया कि इस कटौती का फायदा बैंक धीरे-धीरे ग्राहकों तक पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि खुदरा मुद्रास्फीति में तेज गिरावट देखने को मिली है, जो मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में अचानक आई गिरावट के कारण हुआ है। हालांकि कोर मुद्रास्फीति अभी भी चार प्रतिशत के आसपास बनी हुई है। ताजा अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में मुद्रास्फीति फिर से बढ़कर 4.4 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।
वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी विकास दर का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया है। तिमाही अनुमान के अनुसार, पहली तिमाही में विकास दर 6.5 प्रतिशत, दूसरी में 6.7 प्रतिशत, तीसरी में 6.6 प्रतिशत और चौथी में 6.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी यह 6.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
गवर्नर ने कहा कि इस बार मानसून बेहतर रहा है, मुद्रास्फीति नियंत्रित है और उद्योगों में क्षमता दोहन भी अच्छा है, जिससे घरेलू आर्थिक गतिविधियाँ मज़बूत बनी हुई हैं। सरकार के बढ़ते पूंजीगत व्यय से माँग को भी बल मिल रहा है।
उन्होंने यह भी बताया कि सेवा क्षेत्र में गति बनी हुई है, लेकिन विनिर्माण, खासकर बिजली और खनन जैसे क्षेत्रों में थोड़ी सुस्ती देखी गई है। साथ ही, आयात शुल्क से जुड़ी हालिया घोषणाओं ने विदेशी माँग को लेकर अनिश्चितता बढ़ा दी है, जो आगे के विकास अनुमान के लिए जोखिम बन सकती है।
इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मौद्रिक नीति समिति ने अपनी नीति को निरपेक्ष बनाए रखा है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में जरूरत के अनुसार दरों में कटौती या वृद्धि की जा सकती है। समिति की अगली बैठक 29 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच होगी।