Bangladesh ने 1971 युद्ध पर जताई आपत्ति, भारत के विजय दिवस पोस्ट पर विवाद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय दिवस पर किए गए पोस्ट को लेकर Bangladesh में तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। 1971 के युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में भारत के योगदान को बांग्लादेशी नेताओं ने अलग रूप में परिभाषित करने का प्रयास किया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में काम कर रहे सलाहकार आसिफ नजरूल और अन्य नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर नाराजगी जताई है।
पीएम मोदी का विजय दिवस पोस्ट
विजय दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के सैनिकों के बलिदान और 1971 के युद्ध में भारत की ऐतिहासिक भूमिका पर एक पोस्ट किया था। पीएम मोदी ने कहा, “आज विजय दिवस पर, हम उन बहादुर सैनिकों के साहस और बलिदान को याद करते हैं जिन्होंने 1971 में भारत की ऐतिहासिक जीत में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका बलिदान हमारी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।”
इस पोस्ट के बाद बांग्लादेश में कई नेताओं ने इसे बांग्लादेश के संघर्ष का अपमान करार दिया।
बांग्लादेशी नेताओं की आपत्ति
Bangladesh के छात्र आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक हसनत अब्दुल्ला ने पीएम मोदी की टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया। उन्होंने कहा, “यह युद्ध बांग्लादेश की आजादी का था, जो पाकिस्तान से स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया। भारत सिर्फ एक सहयोगी की भूमिका में था। पीएम मोदी का यह कहना कि यह भारत की जीत थी, बांग्लादेश की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।”
अब्दुल्ला ने यह भी कहा, “मोदी सरकार के बयान Bangladesh के अस्तित्व और स्वतंत्रता संघर्ष को चुनौती देते हैं। हमें भारत की ऐसी बयानबाजी के खिलाफ सतर्क रहना होगा और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपनी लड़ाई जारी रखनी होगी।”
इसी तरह, अंतरिम सरकार के सलाहकार आसिफ नजरूल ने भी भारत की भूमिका को सीमित करार देते हुए कहा, “1971 के युद्ध में भारत एक सहयोगी था, लेकिन यह युद्ध बांग्लादेश के लोगों की ताकत और संकल्प का प्रतीक था। हमें इसे भारत की विजय के रूप में प्रचारित करने से बचना चाहिए।”
भारत की ऐतिहासिक भूमिका
भारत का 1971 के युद्ध में योगदान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तान सेना के अत्याचारों को समाप्त करने में मदद की। युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण किया और इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हालांकि, Bangladesh के लोग इसे अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में याद करते हैं, जबकि भारत इस युद्ध में अपनी सैन्य और मानवीय सहायता के लिए इसे ऐतिहासिक जीत मानता है। यह विभाजन अक्सर दोनों देशों के बीच विवाद का कारण बन जाता है।
Bangladesh का स्वतंत्रता संग्राम
Bangladesh का स्वतंत्रता संग्राम मुख्य रूप से पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए लड़ा गया। 1971 में पाकिस्तान सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए गए अत्याचारों और नरसंहार के खिलाफ बांग्लादेश के नागरिकों ने संगठित संघर्ष किया।
भारत ने बांग्लादेश को सैन्य और मानवीय सहायता देकर पाकिस्तान के खिलाफ इस संघर्ष को निर्णायक मोड़ पर पहुंचाया। भारतीय सेना के शामिल होने के बाद युद्ध 13 दिनों तक चला और अंततः पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया।
विवाद के पीछे की वजह
वर्तमान विवाद की जड़ बांग्लादेश और भारत के बीच ऐतिहासिक घटनाओं के अलग-अलग दृष्टिकोण में छिपी है। बांग्लादेश के नेता इसे अपनी आजादी की लड़ाई बताते हैं और इसमें भारत की भूमिका को सहयोगी के तौर पर सीमित करना चाहते हैं। वहीं, भारत इसे अपनी सैन्य जीत और रणनीतिक सफलता के रूप में देखता है।
प्रधानमंत्री मोदी के विजय दिवस पर दिए गए बयान को कुछ बांग्लादेशी नेताओं ने इस संघर्ष में भारत की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश करार दिया है। उनका मानना है कि यह बांग्लादेश के नागरिकों की कुर्बानी और संघर्ष को कमतर आंकने की कोशिश है।
राजनीतिक और सामाजिक असर
इस बयान के बाद दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक हलचल तेज हो गई है। बांग्लादेश की जनता और नेताओं में इस मुद्दे को लेकर गहरी नाराजगी देखी जा रही है। बांग्लादेश के सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस बयान को लेकर भारत की आलोचना की है। वहीं, भारत का पक्ष साफ है कि उसका उद्देश्य 1971 के युद्ध के नायकों को श्रद्धांजलि देना था।
भारत और Bangladesh के संबंधों पर असर
भारत और Bangladesh के बीच रिश्ते ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत रहे हैं, लेकिन ऐसे विवाद समय-समय पर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनाव का कारण बन जाते हैं। बांग्लादेश का यह मानना कि भारत उसकी आजादी के संघर्ष में अपनी भूमिका को प्रमुखता से पेश कर रहा है, इस रिश्ते को कमजोर कर सकता है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों को इस मुद्दे पर परस्पर सम्मान और समझ के साथ आगे बढ़ना चाहिए। 1971 का युद्ध न सिर्फ भारत की सैन्य सफलता थी बल्कि Bangladesh के लोगों की आजादी की लड़ाई का एक अहम अध्याय भी था।