मार्बल नगरी किशनगढ़ की चमक के पीछे छुपी काली सच्चाई

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NGT रिपोर्ट में उद्योगों के लिए चेतावनी, जनता और पर्यावरण की सुरक्षा पर केंद्रित लड़ाई

किशनगढ़, जिसे ‘मार्बल नगरी’ के नाम से जाना जाता है, अपनी चमकदार सड़कों और शानदार उद्योगों के बावजूद एक गंभीर पर्यावरण संकट से जूझ रहा है। खेत, सड़कें, भूजल और हवा—हर जगह मार्बल स्लरी का असर साफ़ दिखाई दे रहा है। स्थानीय उद्योगपति मुनाफ़ा कमाने में लगे रहे, जबकि प्रशासन इस समस्या पर आंख मूंदे बैठा रहा। हालात इतने बिगड़ गए कि मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) तक ले जाना पड़ा।

NGT द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि अगर उद्योगों को खुली छूट मिली रही, तो मार्बल उद्योग जनता के लिए खतरे का कारण बन सकता है। रिपोर्ट में सड़कों पर धूल और स्लरी फैलने से रोकने, अवैध डंपिंग साइट्स हटाने, भूजल की नियमित जांच करने, स्प्रिंकलर और वॉटर मिस्टिंग सिस्टम लगाने, वेटब्रिज में पारदर्शिता बनाए रखने और डिकैंटिंग वेल्स का रखरखाव सुनिश्चित करने जैसे उपाय सुझाए गए हैं। ये केवल तकनीकी कदम नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की सेहत और आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी हैं।

26 सितंबर की अगली सुनवाई केवल एक तारीख़ नहीं, बल्कि यह उस सोच की परीक्षा है जो विकास को जनता और पर्यावरण की कीमत पर हासिल करना चाहती है। किशनगढ़ की यह लड़ाई सिर्फ स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश के मार्बल उद्योगों के लिए चेतावनी भी है। सवाल यह है कि क्या ये निर्देश अमल में आएंगे या फिर फ़ाइलों में ही दबकर रह जाएंगे। सच्चाई यही है कि विकास तभी सार्थक होगा जब जनता की सेहत और पर्यावरण की बलि लिए बिना हासिल किया जाए।

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