GDP Growth Slows Down: 2025 की दूसरी तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कमजोर, जानिए इसके कारण
भारत की GDP की रफ्तार वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में सुस्त पड़ती दिखाई दी है। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजे आंकड़ों के मुताबिक, देश की GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर महज 5.4 प्रतिशत रही है, जो कि पिछले 18 महीनों का सबसे निचला स्तर है। नेशनल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस (NSO) ने शुक्रवार को इन आंकड़ों को जारी किया, जो कि बाजार के अनुमानों से काफी कम है।
इससे पहले, रॉयटर्स द्वारा किए गए पोल में GDP वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान था। इसके मुकाबले, 5.4 प्रतिशत की वृद्धि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी गिरावट है। दूसरी तिमाही में यह आंकड़ा अप्रैल-जून के मुकाबले 6.7 प्रतिशत कम और पिछले साल की समान तिमाही (जुलाई-सितंबर 2023) में 8.1 प्रतिशत की तुलना में काफी नीचे है।

ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में भी गिरावट
भारतीय अर्थव्यवस्था की गतिविधियों को मापने के लिए ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) एक महत्वपूर्ण संकेतक है। इस तिमाही में GVA की वृद्धि दर 5.6 प्रतिशत रही, जो अपेक्षित 6.5 प्रतिशत से कम है। पिछले साल की तुलना में यह 7.7 प्रतिशत और पहली तिमाही की तुलना में 6.8 प्रतिशत से भी कम है, जो यह दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में गतिविधियां अपेक्षाकृत धीमी रही हैं। GVA में गिरावट का मुख्य कारण कृषि, निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र की सुस्ती है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन कम हुआ, जबकि निर्माण क्षेत्र में गति की कमी और औद्योगिक उत्पादन में गिरावट देखने को मिली। इस धीमी वृद्धि ने समग्र अर्थव्यवस्था की गति को प्रभावित किया है, जिससे GDP वृद्धि दर भी घटकर 5.4 प्रतिशत तक पहुंच गई। यह संकेत करता है कि आर्थिक सुधारों और प्रोत्साहनों की आवश्यकता है।

क्या कारण हैं इस धीमी वृद्धि के?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि भारतीय GDP का प्रदर्शन इस तिमाही में कमजोर पड़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- औद्योगिक उत्पादन में गिरावट: भारतीय औद्योगिक क्षेत्र, जो कि देश की आर्थिक वृद्धि का महत्वपूर्ण हिस्सा है, इस तिमाही में अपेक्षाकृत कमजोर रहा है। निर्माण क्षेत्र में कमी और कुछ बड़े उद्योगों की सुस्त वृद्धि से जीडीपी में गिरावट आई।
- कृषि क्षेत्र की धीमी वृद्धि: कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर भी काफी धीमी रही है। भारतीय कृषि मानसून के असमय परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित है, जिससे उत्पादन में कमी आई और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी आई।
- उपभोक्ता मांग में गिरावट: महामारी के बाद, उपभोक्ता विश्वास और मांग में धीरे-धीरे कमी आई है, जिससे व्यापार और सेवा क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। उच्च महंगाई और बेरोजगारी ने भी उपभोक्ताओं की खर्च करने की क्षमता पर असर डाला है।
- निवेश में कमी: इस तिमाही में निजी निवेश में कमी आई है, जो अर्थव्यवस्था की बढ़त के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। वैश्विक अस्थिरता और घरेलू अनिश्चितताओं ने निवेशकों को सतर्क बना दिया है।
- वैश्विक परिस्थितियाँ: भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक बाजारों और विदेशों में घटित हो रही घटनाओं से भी प्रभावित हुई है। यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में समस्याएं, इन सभी का असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।
आगे की दिशा: सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?
GDP धीमी वृद्धि को देखकर सरकार के लिए कई कदम उठाना जरूरी हो गया है। सरकार को अपने आर्थिक सुधारों की गति को तेज करने की जरूरत है। खासकर, उत्पादन और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए तंत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। कृषि क्षेत्र में सुधार, वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण उपलब्धता में वृद्धि और उपभोक्ता खर्च को बढ़ाने के लिए राहत पैकेज देने पर भी ध्यान देना होगा।
इसके अलावा, वित्त मंत्रालय को उद्योगों और व्यापारियों के लिए प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करने की दिशा में भी तेजी दिखानी चाहिए ताकि रोजगार और आय सृजन में बढ़ोतरी हो सके।
Pappu Yadav को फिर मिली जान से मारने की धमकी, पुलिस में शिकायत दर्ज