अंतरिक्ष सम्मिलन प्रौद्योगिकी परीक्षण के लिए भेजे गए ISRO के दोनों यान अब होल्ड मोड में

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ISRO का स्पेस डॉकिंग मिशन: दोनों यान होल्ड मोड में, 500 मीटर तक घटाई जाएगी दूरी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का स्वदेशी स्पेस डॉकिंग प्रौद्योगिकी (स्पाडेक्स) का परीक्षण, जिसे अंतरिक्ष में भेजे गए दो यानों के परस्पर मिलाने के लिए डिजाइन किया गया है, अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच चुका है। इस मिशन के तहत प्रक्षेपित किए गए दोनों यान अब होल्ड मोड में हैं और इनकी दूरी वर्तमान में 1500 मीटर है। ISRO ने घोषणा की है कि इन दोनों यानों के बीच की दूरी को घटाकर 500 मीटर तक लाने का काम शनिवार सुबह तक किया जाएगा, जिसके बाद डॉकिंग प्रक्रिया की तैयारी की जाएगी।

ISRO का महत्वाकांक्षी मिशन

ISRO के इस मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में दो यानों को सफलतापूर्वक मिलाकर स्पेस डॉकिंग प्रौद्योगिकी का परीक्षण करना है, जो भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने और मानव मिशनों के लिए आवश्यक होगी। इसरो के लिए यह एक अहम तकनीकी सफलता है, क्योंकि अंतरिक्ष यानों के बीच परस्पर डॉकिंग का परीक्षण अंतरिक्ष अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

डॉकिंग का महत्व और भविष्य के मिशन

स्पेस डॉकिंग की तकनीक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) जैसे मिशनों के लिए आवश्यक है, जहां कई यान एक साथ जुड़कर काम करते हैं। यही नहीं, मानव सहित अंतरिक्ष मिशन में भी डॉकिंग तकनीक की भूमिका अहम होगी, खासकर जब अंतरिक्ष में लंबे समय तक मिशन भेजे जाते हैं। इस मिशन के माध्यम से ISRO इस तकनीक को समझने और उसकी कार्यक्षमता को जांचने का प्रयास कर रहा है, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा के दौरान यानों को जोड़ने, साथ काम करने और सामग्री स्थानांतरण में आसानी हो सके।

ISRO द्वारा की गई घोषणा

ISRO ने शुक्रवार शाम एक बयान जारी करते हुए कहा, “दोनों अंतरिक्ष यान वर्तमान में 1.5 किलोमीटर दूर स्थित हैं और होल्ड मोड में काम कर रहे हैं। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि यान अपनी वर्तमान दूरी बनाए हुए हैं और आगे नहीं बढ़ रहे हैं।” इसरो ने बताया कि यानों के बीच की दूरी घटाने का काम अब शुरू किया जाएगा और शनिवार तक इसे घटाकर 500 मीटर किया जाएगा। इसके बाद, डॉकिंग प्रक्रिया के अगले चरण की शुरुआत की जाएगी।

मिशन की प्रगति और भविष्य की योजना

ISRO के मिशन की शुरुआत 30 दिसंबर को हुई थी, जब दोनों यान को पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। पहले कार्यक्रम के अनुसार, दोनों यान 7 जनवरी को एक-दूसरे से जुड़ने वाले थे, लेकिन बाद में यह तारीख बढ़ाकर 9 जनवरी कर दी गई। इस प्रक्रिया के बाद, यान को एक-दूसरे से जोड़ने और स्पेस डॉकिंग की सफलता की दिशा में एक और कदम बढ़ाया जाएगा।

इस मिशन की सफलता अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ी छलांग हो सकती है, क्योंकि इससे भारत को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को और सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, इससे भारतीय अंतरिक्ष शोध की दिशा में नए आयाम स्थापित हो सकते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसरो की पहचान को और मजबूत करेगा।

ISRO की अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीकी क्षमता

स्पेस डॉकिंग तकनीक, जो उपग्रहों या यानों को परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया है, भविष्य में अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। ISRO का यह परीक्षण उस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाने का प्रयास है, जहां वह अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने के लिए अपनी क्षमता को मजबूत कर सके। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विशेष अंतरिक्ष स्टेशन में लंबी अवधि तक रहने के लिए इस तकनीक का विकास अनिवार्य है।

इसके अलावा, यह प्रौद्योगिकी ISRO को भविष्य में स्वतंत्र रूप से अंतरराष्ट्रीय मिशनों के लिए यान लॉन्च करने, उपग्रहों की मरम्मत, और अधिक जटिल मिशनों को पूरा करने में मदद करेगी। यह भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी को प्रतिस्पर्धात्मक अंतरिक्ष उद्योग में एक प्रमुख स्थान दिला सकती है।

भविष्य में स्पेस डॉकिंग की संभावना

स्पेस डॉकिंग तकनीक के सफल परीक्षण के बाद, ISRO के लिए और भी अधिक अवसर खुल सकते हैं। आने वाले वर्षों में इस तकनीक को और सटीक बनाने के लिए परीक्षण और अनुसंधान किए जाएंगे। इस मिशन की सफलता न केवल इसरो के लिए बल्कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भी एक ऐतिहासिक पल होगी।

इस मिशन के साथ ISRO अंतरिक्ष मिशन की एक नई दिशा में कदम रखेगा, जो न केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रभावी हो सकता है। आने वाले समय में, जब अंतरिक्ष यात्रा और अंतरिक्ष यानों का परस्पर जुड़ना सामान्य हो जाएगा, तब इसरो की स्पेस डॉकिंग तकनीक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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