उर्स में छड़ी और झंडा पेश करने वाला कलंदरों का जत्था Ajmer पहुंचा

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Ajmer में 813वें सालाना उर्स के दौरान कलंदरों का जत्था पहुंचा

राजस्थान के Ajmer में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के 813वें सालाना उर्स का आयोजन धूमधाम से हो रहा है। इस उर्स में विशेष रूप से दिल्ली के महरौली से रवाना हुआ कलंदरों और मलंगों का जत्था बुधवार सुबह पुष्कर घाटी स्थित चिल्ले पहुंचा। यह जत्था, जो ख्वाजा साहब के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा को प्रदर्शित करने के लिए Ajmer शरीफ पहुंचा है, उर्स के अवसर पर छड़ी और झंडा पेश करेगा। इस दौरान कलंदर और मलंग अपने करतबों का प्रदर्शन भी करेंगे, जिससे धार्मिक उत्सव का माहौल और भी रौनकदार हो गया है।

कलंदरों और मलंगों का जत्था महरौली से अजमेर की ओर रवाना हुआ
दिल्ली के महरौली से लगभग एक हजार से अधिक कलंदरों और मलंगों का जत्था ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स में भाग लेने के लिए Ajmer के लिए रवाना हुआ था। यह जत्था बीती रात गेगल पहुंचा और आज सुबह अजमेर शरीफ की सरजमीं पर आकर “अल्लाह ओ अकबर” और “ख्वाजा का जयघोष” करते हुए नगर में प्रवेश किया। इस यात्रा के दौरान कलंदर और मलंग नंगे पांव चलकर ख्वाजा के उर्स का संदेश देते हुए Ajmer पहुंचे। यह उनका एक प्रकार का श्रद्धा प्रदर्शन था, जो उनके समर्पण और भक्ति को दर्शाता है।

महरौली से अजमेर पहुंचने पर जबरदस्त स्वागत
कलंदरों और मलंगों के जत्थे के Ajmer पहुंचने पर स्थानीय लोगों ने उनका जोरदार स्वागत किया। सर्वधर्म एकता समिति द्वारा आयोजित स्वागत समारोह में इन श्रद्धालुओं का इस्तकबाल किया गया। इस स्वागत में विभिन्न धर्मों के लोग एकजुट होकर इस धार्मिक अवसर का सम्मान कर रहे थे, जो दर्शाता है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में सभी धर्मों के लोग समान रूप से श्रद्धा और सम्मान रखते हैं। यह स्वागत समारोह समग्र समाज में धार्मिक एकता और भाईचारे का प्रतीक बन गया।

कलंदरों और मलंगों द्वारा किए जाने वाले करतब और प्रदर्शन
Ajmer में पहुंचने के बाद कलंदर और मलंग दिनभर आराम करने के बाद शाम को चिल्ले से दरगाह की ओर जुलूस की शक्ल में चलकर पहुंचेगे। इस जुलूस के दौरान वे अपने अद्भुत करतबों का प्रदर्शन करेंगे, जो उर्स की रौनक और धार्मिक माहौल को और भी बढ़ाएंगे। उनके करतबों में जांबाजी, नृत्य और धार्मिक संगीत का प्रदर्शन किया जाएगा, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगा। इसके साथ ही वे अपनी श्रद्धा स्वरूप छड़ी और झंडा पेश करेंगे, जो एक प्रकार से ख्वाजा साहब के प्रति उनकी श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है।

उर्स के जश्न में दिखी धार्मिक एकता
Ajmer: यह उर्स न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है। जब कलंदर और मलंग अपने करतबों का प्रदर्शन करते हैं और झंडा और छड़ी पेश करते हैं, तो यह सभी धर्मों के लोगों के बीच एकता का प्रतीक बन जाता है। Ajmer शरीफ की दरगाह में हर साल हजारों श्रद्धालु विभिन्न धर्मों के होते हैं, जो यहां आकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इस वर्ष भी उर्स के अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया है, जो ख्वाजा साहब के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर रहे हैं।

Ajmer शरीफ दरगाह का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
Ajmer शरीफ दरगाह का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व बहुत गहरा है। यह दरगाह ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की समाधि है, जो सूफी संत थे और जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी मानवता की सेवा में बिताई। उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। अजमेर शरीफ की दरगाह एक ऐसी जगह है, जहां हर धर्म और पंथ के लोग आते हैं और अपनी मन्नतें मांगते हैं। उर्स के दौरान दरगाह में विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिनमें कलंदरों और मलंगों का जत्था प्रमुख आकर्षण होता है।

उर्स के दौरान विशेष आयोजन और कार्यक्रम
Ajmer शरीफ में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स के दौरान कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इनमें कव्वाली, नात-शरीफ और सूफी संगीत का आयोजन भी शामिल होता है, जो उर्स के माहौल को और भी भव्य बनाते हैं। कलंदरों और मलंगों का जत्था इस अवसर पर अपनी श्रद्धा अर्पित करता है और पूरे आयोजन को विशेष बनाता है।

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