Ashadh(आषाढ़) के बादल गरजते है और खेतो में ट्रेक्टर भी गरजने लगते हैं

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Ashadh(आषाढ़): किसानों का उत्सव

कविताओं में गीतों में शायरियों में सावन के महीने को जितना महत्व दिया गया है उतना Ashadh के महीने को नहीं मिल पाया, आषाढ़ के महीने का स्वागत जितने मन से जितने हृदय से के किसान करता है उतना कोई भी नहीं करता है , खेतों की तपती कर सुखी मिट्टी पर जब Ashadh के बादलो की बरसाई हुयी हलकी बुँदे पड़ती है तो मिट्टी की सोंधी महक और किसान के चेहरे की चमक जो छटा बिखेरती है वो पूरे बारह महीनो में केवल इसी महीने में देखने को मिलती है !

Ashadh का महीना मतलब की चौमासे की शुरुआत यानी ब्याह शादी जैसे कोई भी उत्सव पर रोक लग जाना , यात्राएं कम हो जाना और खेती की तैयारियों में जुट जाना , जहाँ बारह महीनो में पड़ने वाली अमावस को पितरों की अमावस मानी जाती है वहीँ Ashadh की अमावस को हलहारिणी अमावास कहा जाता है इस दिन किसान फसल की देवी की को प्रसन्न करने के लिए कृषि यंत्रो की पूजा करता है ! असल में अन्नदाताओं के लिए आषाढ़ ही सबसे बड़ा उत्सव है जब वो हिलमिल कर लोक गीत गाते हुए धान की रुपायी शुरू करते हैं !

Ashadh

लोकगीतों में Ashadh(आषाढ़)

रिमझिम बरसत पनिया आवा चली धान रोपे धनिया,
लहरत बा तलवा म पनिया, आवा चली रोपे धनिया।
सोने के थरिया म ज्योना परोंसें पिया कां जेवावैं आई धनिया,
झंझरे गेंड़ुवा गंगाजल पनिया पिया का घुटावैं आई धनिया।
धान रोपि कै जब घर आयों, नाच्यों गायों खुसी मनायों,
भरि जइहें कोठिला ए धनिया आवा चलि धान रोपे धनिया।’

केवल किसान ही नहीं बल्कि कई दिनों से जेठ बैसाख की गर्मी तप रहे आम जन भी आसमान में छा चुके काले बादलों को देख कर हर्षित हो उठते हैं, राजस्थान के धोरों पर जब बरसात की रिमझिम बूंदे पड़ने लगती हैं तो राजस्थानियों के लिए वो हीरे मोतियों से कम नहीं होती , इसी ख़ुशी को देख कर किसी कवी ने लिखा है।

सजेगी मांग धरती की बजेगी धान की पायल,
लो फिर मोती लुटाने आ गए आषाढ़ के बादल !!!

वहीँ आकाश में पहली बदली को देखते ही मरुधरा के गाँवों में भी उल्लास का माहौल बन जाता है , हर्ष की लहर छा जाती है और नव यौवनाये गाने लगती है

गाँव गाँव में बादळी ,
सुणो सनेसो गाज ,
इन्दर बूठण आवियो ,
तूठण मरुधर आज

यानि की ये जो बदली है ये इंद्र भगवान् का सन्देश ले कर आयी है और गाँव गाँव जा कर कह रही है की आज मरुधर की प्यास बुझने वाली है!

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