Bastar Olympics: नक्सली प्रभाव से उबरते हुए खेलों के नए युग की शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 117वें संस्करण में बस्तर ओलंपिक की महत्ता पर विस्तार से बात की। उन्होंने इसे न केवल खेलों का महाकुंभ, बल्कि देश में बदलाव और नक्सली हिंसा से उबरने का प्रतीक भी बताया। Bastar Olympics, जो एक समय नक्सली हिंसा का गवाह था, अब खेलों का आयोजन कर रहा है और यहां के युवा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर देश के लिए एक नई उम्मीद की किरण बने हैं।
Bastar Olympics: बदलाव का प्रतीक
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बस्तर में हो रहे इस ओलंपिक ने न केवल वहां के युवाओं की प्रतिभा को उजागर किया, बल्कि इसने यह साबित कर दिया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी विकास और सकारात्मक बदलाव संभव है। पहले जहां डर और हिंसा का माहौल था, वहीं अब यह क्षेत्र एक नया चेहरा प्रस्तुत कर रहा है। “बस्तर ओलंपिक” ने युवाओं को अपने सपनों को साकार करने का मौका दिया है और यह देशभर के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
Bastar Olympics का महत्व और इसकी शुरुआत
Bastar Olympics का शुभंकर “वन भैंसा” और “पहाड़ी मैना” हैं, जो बस्तर की समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हैं। इसमें भाग लेने वाले खिलाड़ी केवल अपने खेल के साथ नहीं, बल्कि एक नई उम्मीद और आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरते हैं। बस्तर ओलंपिक का मूल मंत्र है “करसाय ता बस्तर बरसाए ता बस्तर”, जिसका अर्थ है “खेलेगा बस्तर – जीतेगा बस्तर”। यह मंत्र केवल खेल की भावना को ही नहीं, बल्कि एकता और राष्ट्र निर्माण की ओर भी संकेत करता है।
इस ओलंपिक में सात जिलों के 1,65,000 खिलाड़ी शामिल हुए, जो खुद में एक बड़ी उपलब्धि है। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं है, बल्कि यह बस्तर के युवाओं की मेहनत, संघर्ष और संकल्प का प्रतीक है। यहां के एथलेटिक्स, तीरंदाजी, बैडमिंटन, फुटबॉल, हॉकी, वेटलिफ्टिंग, कराटे, कबड्डी, खो-खो और वॉलीबॉल जैसे खेलों में हमारे युवाओं ने अपनी कड़ी मेहनत से अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
Bastar Olympics के प्रेरक कहानियां
प्रधानमंत्री मोदी ने Bastar Olympics में भाग लेने वाले कुछ युवाओं की प्रेरक कहानियां भी साझा की, जिन्होंने अपनी कठिनाइयों को पार कर सफलता प्राप्त की। कारी कश्यप, जो बस्तर से आईं और तीरंदाजी में रजत पदक जीता, उन्होंने कहा कि बस्तर ओलंपिक ने उन्हें केवल खेल में ही नहीं, बल्कि जीवन में आगे बढ़ने का भी अवसर दिया। सुकमा की पायल कवासी ने भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीता और उनका मानना है कि कड़ी मेहनत और अनुशासन से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।
सुकमा के दोरनापाल के पुनेम सन्ना की कहानी और भी प्रेरणादायक है। एक समय नक्सलियों के प्रभाव में आए पुनेम सन्ना आज व्हीलचेयर पर दौड़कर मेडल जीत रहे हैं। उनका साहस और संघर्ष हर किसी के लिए प्रेरणा है। कोडागांव की तीरंदाज रंजू सोरी को ‘बस्तर यूथ आइकॉन’ चुना गया है, और उनका मानना है कि बस्तर ओलंपिक ने दूरदराज के युवाओं को राष्ट्रीय मंच पर अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर दिया है।
Bastar Olympics: विकास और खेल का संगम
प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि बस्तर ओलंपिक केवल एक खेल आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक मंच है जहां विकास और खेल का संगम हो रहा है। यहां के युवा अपनी खेल प्रतिभा को निखार रहे हैं और इस प्रकार एक नया भारत निर्माण कर रहे हैं। उनका कहना था कि इस आयोजन ने यह दिखाया है कि किसी भी क्षेत्र में विकास के लिए संघर्ष और मेहनत से कोई भी बाधा पार की जा सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि हमारे स्थानीय क्षेत्र की खेल प्रतिभाओं को भी आगे बढ़ने का अवसर मिले। खेल केवल शारीरिक विकास का माध्यम नहीं हैं, बल्कि ये समाज को जोड़ने, युवाओं को एकजुट करने और उन्हें राष्ट्र निर्माण की ओर प्रेरित करने का भी एक सशक्त माध्यम हैं।
खेल से मिलती है एकता और प्रेरणा
प्रधानमंत्री मोदी ने Bastar Olympics को एक नई दिशा देने का आह्वान किया और कहा कि यह सिर्फ एक खेल आयोजन नहीं, बल्कि एक सामाजिक परिवर्तन का उदाहरण है। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में खेलों को प्रोत्साहित करें और भारत के युवाओं की कहानियों को साझा करें। “खेलेगा भारत – जीतेगा भारत” का मंत्र न केवल शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह युवाओं की मानसिकता और समाज में बदलाव के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
प्रधानमंत्री ने Bastar Olympics की सफलता की सराहना करते हुए कहा कि यह उदाहरण है कि जब हम अपने युवाओं को सही अवसर प्रदान करते हैं, तो वे केवल खेल के मैदान पर ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं।
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