इसरो का NVS-02 उपग्रह: भारत के नेविगेशन क्षमता में नया कदम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने जीएसएलवी-एफ15 मिशन के तहत, NVS-02 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित करने के लिए तैयार है। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगा क्योंकि यह इसरो का 100वां प्रक्षेपण है। इस लेख में, हम NVS-02 उपग्रह की तकनीकी विशेषताओं और इसके महत्व को विस्तार से समझेंगे।
इसरो का 100वां प्रक्षेपण: एक ऐतिहासिक क्षण
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से होने वाला यह प्रक्षेपण इसरो के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह 100वां प्रक्षेपण है, जो भारतीय अंतरिक्ष संगठन की बढ़ती ताकत और क्षमता को रेखांकित करता है। इस प्रक्षेपण के माध्यम से, इसरो ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत किया है।
इस मिशन के अंतर्गत, जीएसएलवी-एफ15 रॉकेट का उपयोग किया जाएगा, जो भारतीय गियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) का 17वां मिशन होगा। इसके साथ ही, यह मिशन स्वदेशी क्रायोजेनिक स्टेज के साथ 11वीं उड़ान होगी, जो इसरो की स्वदेशी तकनीक और क्षमता को दर्शाता है।
NVS-02 उपग्रह और भारतीय नेविगेशन प्रणाली
NVS-02 उपग्रह को भारतीय नेविगेशन (NAVIC) प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए कक्षा में तैनात किया जाएगा। NAVIC, भारत की स्वायत्त क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है, जो सटीक स्थिति, वेग, और समय (PVT) सेवाएं प्रदान करती है। यह सेवा न केवल भारत में बल्कि भारतीय भूभाग से लगभग 1500 किलोमीटर दूर तक फैले क्षेत्र में भी उपलब्ध है।
NAVIC उपग्रह दो प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है:
- मानक पोजिशनिंग सेवा (SPS) – यह 20 मीटर (2σ) से बेहतर स्थिति सटीकता और 40 नैनोसेकंड (2σ) से बेहतर समय सटीकता प्रदान करती है।
- प्रतिबंधित सेवा (RS) – यह सेवाएं विशेष सुरक्षा और अन्य अत्यधिक संवेदनशील कार्यों के लिए होती हैं।
NVS-02 उपग्रह NAVIC के लिए नई पीढ़ी का हिस्सा है और इसकी मदद से भारत को वैश्विक स्तर पर उच्चतम नेविगेशन सटीकता प्राप्त होगी।
NVS-02 की विशेषताएँ और तकनीकी क्षमता
NVS-02 उपग्रह का लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान 2250 किलोग्राम है, और यह लगभग 3 किलोवाट की पावर हैंडलिंग क्षमता रखता है। उपग्रह में उन्नत नेविगेशन पेलोड है जो एल1, एल5 और एस बैंड को कवर करता है, और यह इसके पूर्ववर्ती NVS-01 से कहीं अधिक प्रभावी है।
इसके अतिरिक्त, यह उपग्रह सी-बैंड में रेंजिंग पेलोड से भी लैस है, जो उपग्रह की सटीकता और कार्यक्षमता को बढ़ाता है। NVS-02 उपग्रह, IRNSS-1E उपग्रह की जगह लेगा, जो वर्तमान में 111.75°E पर स्थित है। इससे NAVIC प्रणाली की सटीकता और विश्वसनीयता में महत्वपूर्ण वृद्धि होगी।
उपग्रह की तैयारी और परीक्षण प्रक्रिया
NVS-02 उपग्रह को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत यूआर सैटेलाइट सेंटर (URSC) में विकसित और एकीकृत किया गया है। यह उपग्रह भारतीय नेविगेशन प्रणाली NAVIC को सशक्त बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और इसकी सफलता भारत की स्वायत्त नेविगेशन सेवाओं में एक महत्वपूर्ण योगदान होगी।
उपग्रह की प्रक्षेपण के लिए तैयारियों में कई जटिल परीक्षण शामिल थे, जैसे थर्मोवैक और गतिशील परीक्षण। थर्मोवैक परीक्षण में उपग्रह को उच्च और निम्न तापमान में रखने की प्रक्रिया के दौरान उसकी संरचनात्मक स्थिरता और कार्यक्षमता की जांच की गई। वहीं गतिशील परीक्षणों में उपग्रह की गतिशीलता और भार क्षमता का मूल्यांकन किया गया।
इन सभी परीक्षणों के बाद, NVS-02 उपग्रह को 5 जनवरी, 2025 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC SHAR) के लिए रवाना किया गया था। वहां, उपग्रह प्रक्षेपण पूर्व अभियान गतिविधियों से गुजर रहा है, जिसमें प्रक्षेपण से पहले अंतिम तैयारी और निरीक्षण शामिल हैं। इस उपग्रह के प्रक्षेपण के बाद भारत की नेविगेशन क्षमता में महत्वपूर्ण सुधार होगा, जो न केवल भारत, बल्कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र को भी उच्च सटीकता वाली नेविगेशन सेवाएं प्रदान करेगा।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण कदम
NVS-02 उपग्रह का प्रक्षेपण भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और महत्वपूर्ण कदम है। इस प्रक्षेपण से भारत की स्वदेशी उपग्रह प्रणाली को और मजबूती मिलेगी, जो देश को अंतरिक्ष विज्ञान में और अधिक आत्मनिर्भर बनाएगी। यह मिशन यह भी सुनिश्चित करेगा कि भारतीय उपग्रह प्रणाली वैश्विक मानकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चले और किसी भी संकट या प्राकृतिक आपदा के समय सटीक और विश्वसनीय नेविगेशन सेवाएं प्रदान कर सके।
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