चीन ने 6 महीने तक सुनी Trump की फोन कॉल, चुराया डेटा

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चीन ने छह महीने तक Trump के फोन की जासूसी की, चुराया डेटा: पूर्व NSA सलाहकार का दावा

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति Trump के एक पूर्व सीनियर सहयोगी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) एचआर मैकमास्टर ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। उनके अनुसार, चीन ने Trump के फोन को हैक किया और छह महीने तक उनके और उनके करीबी सहयोगियों के फोन कॉल्स की निगरानी की, साथ ही बड़ी मात्रा में डेटा भी चुराया। यह जानकारी मैकमास्टर ने 2017 से 2018 के दौरान अपने कार्यकाल के अनुभव को साझा करते हुए दी। उनका यह बयान अमेरिका-चीन संबंधों और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में अहम सवाल उठाता है।

चीन की साइबर घुसपैठ पर एचआर मैकमास्टर की चेतावनी

मैकमास्टर ने काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह खुलासा किया कि चीन ने अमेरिकी दूरसंचार नेटवर्क पर बड़े पैमाने पर साइबर हमला किया था। उन्होंने यह भी कहा कि चीन ने Trump के फोन को न सिर्फ हैक किया, बल्कि इसके माध्यम से महत्वपूर्ण डेटा भी चुराया। उनके अनुसार, चीन का यह साइबर हमला अमेरिका के खिलाफ एक रणनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए था। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका को चीन की साइबर घुसपैठ पर “बहुत महत्वपूर्ण लागत” लगाने की आवश्यकता है, ताकि ऐसे हमलों को रोका जा सके।

किसी ने नहीं समझा गंभीरता: मैकमास्टर

मैकमास्टर ने यह भी कहा कि इस समय तक कई लोगों को चीन द्वारा किए गए इस साइबर हमले की गंभीरता का पूरी तरह से अंदाजा नहीं था। उनका कहना था, “मुझे लगता है कि चीन यही कर रहा है, और आप सोच सकते हैं कि यह कहना थोड़ी पागलपंती है, लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि चीन परमाणु क्षमता की तैयारी कर रहा है, ताकि वह अमेरिका के खिलाफ पहले परमाणु हमले की क्षमता बना सके।” मैकमास्टर के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि चीन की रणनीति सिर्फ साइबर घुसपैठ तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दायरे में परमाणु हमले की तैयारी भी शामिल है।

पहले हमले की परमाणु क्षमता की रणनीति

“पहले हमले की परमाणु क्षमता” एक ऐसी रणनीति है जिसमें एक देश परमाणु हमले से पहले अपने दुश्मन के परमाणु शस्त्रागार को नष्ट करने की कोशिश करता है, ताकि जवाबी कार्रवाई की क्षमता को कमजोर किया जा सके। मैकमास्टर का दावा था कि चीन इस क्षमता की तैयारी कर रहा है, जिससे वह भविष्य में किसी भी संभावित संघर्ष के दौरान पहले हमले की स्थिति में आ सकता है। उनका यह बयान अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संकेत करता है कि चीन की सैन्य तैयारी न केवल पारंपरिक तरीके से हो रही है, बल्कि इसमें साइबर हमले और परमाणु रणनीतियाँ भी शामिल हैं।

Trump प्रशासन के दौरान चीन की सक्रियता

यह घटना Trump प्रशासन के दौरान चीन के प्रति अमेरिका की चिंताओं को और बढ़ाती है। Trump के राष्ट्रपति बनने के बाद, चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध और सामरिक तनाव में बढ़ोतरी हुई थी। इस दौरान चीन की साइबर सुरक्षा और उसके सैन्य विस्तार को लेकर कई बार चिंताएँ जाहिर की गई थीं। लेकिन मैकमास्टर का यह खुलासा चीन के साइबर हमलों और सैन्य रणनीतियों को लेकर एक नई दिशा में सोचने पर मजबूर करता है।

डेटा चोरी और साइबर सुरक्षा में कमजोरी

मैकमास्टर ने इस घटना को अमेरिका के दूरसंचार नेटवर्क की सुरक्षा में एक बड़ी कमजोरी के रूप में प्रस्तुत किया। चीन द्वारा Trump के फोन कॉल्स की निगरानी और डेटा चुराने से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका के साइबर सुरक्षा ढांचे में गंभीर खामियाँ हैं, जिनका फायदा चीन जैसी शक्तियां उठा सकती हैं। चीन की तरफ से की गई इस साइबर घुसपैठ ने यह भी उजागर किया कि वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा को लेकर देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन सकती है, जहां एक दूसरे के सूचना नेटवर्क को तोड़कर अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

चीन का सैन्य और साइबर रणनीतिक दृष्टिकोण

Trump: चीन की सैन्य और साइबर रणनीति को लेकर अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों और विशेषज्ञों में लगातार चर्चा हो रही है। चीन की बढ़ती साइबर सक्रियता और उसकी आक्रमक सैन्य नीति ने अमेरिकी सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा किया है। चीन ने न सिर्फ अपने आर्थिक और सैन्य ताकत को बढ़ाया है, बल्कि वह सूचना युद्ध के माध्यम से अपने विरोधियों को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। यह चीन की अंतरराष्ट्रीय रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, और अमेरिका को इसके लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।

अमेरिका-चीन रिश्तों में तनाव

Trump: मैकमास्टर का यह बयान अमेरिका और चीन के रिश्तों में पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध, तकनीकी प्रतिस्पर्धा और सामरिक मुद्दों पर मतभेद लगातार सामने आते रहे हैं। साइबर सुरक्षा और जासूसी के मामलों में दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी रहा है। इस नए खुलासे ने यह सवाल उठाया है कि क्या अमेरिका को अपनी साइबर सुरक्षा नीति में बदलाव करने की आवश्यकता है और क्या चीन की सैन्य रणनीति को लेकर उसे और कठोर कदम उठाने चाहिए।

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