दीपावली पर गुर्जर समाज की अनोखी परंपरा: ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते, करते हैं बेलड़ी पूजन और पूर्वजों का श्राद्ध

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बारांवरदा क्षेत्र में दीपावली सिर्फ रोशनी का नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का पर्व — गुर्जर समाज निभाता है सदियों पुरानी मान्यता, भगवान देवनारायण से जुड़ी कथा आज भी जीवित

बारांवरदा: दीपावली जहां पूरे देश में खुशियों, रोशनी और उत्सव का प्रतीक है, वहीं राजस्थान के बारांवरदा और आसपास के गांवों में गुर्जर समाज दीपावली को एक विशेष धार्मिक परंपरा के रूप में मनाता है।
इस दिन समाज के लोग बेलड़ी पूजन करते हैं और ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखते, जो एक सदियों पुरानी मान्यता से जुड़ा हुआ है।

गायत्री मंत्रों के साथ बेलड़ी पूजन
गांव के तालाब किनारे समाज के बुजुर्ग और युवा एकत्र होकर गायत्री मंत्रों का उच्चारण करते हुए बेल (बिल्व) वृक्ष की पूजा करते हैं। पंचामृत से पूजन कर मिट्टी से ‘बेलड़ी दाब’ (प्रतीक रूप) बनाई जाती है, जिसे घर या मंदिर में स्थापित किया जाता है। यह पूजा शुभता, पवित्रता और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है।

दीपावली पर पूर्वजों का श्राद्ध और सामूहिक भोज
गुर्जर समाज इस दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध भी करता है। परंपरा के अनुसार, एक ही गोत्र के परिवार ‘सामूहिक थाली’ में भोजन करते हैं — जो एकता और समानता का प्रतीक है। यह सामूहिक भोज समाज के लोगों को आपसी प्रेम और भाईचारे से जोड़ता है।

ब्राह्मणों का चेहरा क्यों नहीं देखते
लोककथा के अनुसार, भगवान देवनारायण के नामकरण संस्कार के समय राजा बागड़ के कहने पर चार ब्राह्मणों ने उन्हें मारने का प्रयास किया था। तब भगवान ने शाप दिया कि दीपावली के दिन गुर्जर समाज ब्राह्मणों का चेहरा नहीं देखेगा।
इसी मान्यता के चलते उस दिन ब्राह्मण समाज भी गुर्जर गांवों से दूर रहता है, और दूध, पानी या अन्य वस्तुओं का लेन-देन नहीं किया जाता।

परंपरा आज भी जीवित
यह परंपरा सदियों पुरानी होने के बावजूद आज भी पूरे श्रद्धा, अनुशासन और सामूहिकता के साथ निभाई जाती है। दोनों समाजों के बीच आस्था और सम्मान का भाव आज भी कायम है।
गुर्जर समाज की यह परंपरा राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक एकता का अनूठा उदाहरण पेश करती है।

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