एक दशक बाद पर्यावरण प्रेमियों को मिली राहत, किसानों को भी मिलेगा फायदा
अपडेट इंडिया | बारां | 22 जून 2025
राजस्थान के बारां जिले से प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के मोर्चे पर एक सुखद खबर सामने आई है। एक दशक बाद पहली बार यहां बड़ी संख्या में गिद्धों का दिखाई देना न केवल वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के लिए उत्साहजनक है, बल्कि किसानों के लिए भी यह एक सकारात्मक संकेत है।
खेतों में हल्की बारिश और गिद्धों की वापसी
बारां जिले के एक गांव के खेतों में हाल ही में हल्की बारिश के दौरान बड़ी संख्या में गिद्ध नजर आए, जो इस ओर इशारा करता है कि इस वर्ष इनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
गिद्धों की वापसी को पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।

गिद्ध: किसानों के असली मित्र
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, गिद्धों को ‘प्राकृतिक सफाईकर्मी’ माना जाता है।
ये सड़े-गले शवों को खाकर वातावरण को स्वच्छ बनाए रखते हैं और बीमारियों के प्रसार को रोकते हैं।
किसानों के लिए भी ये पक्षी आर्थिक और जैविक लाभ पहुंचाते हैं क्योंकि वे मृत पशुओं को प्राकृतिक रूप से नष्ट कर देते हैं।
भारत में पाई जाने वाली प्रमुख गिद्ध प्रजातियाँ
भारत में गिद्धों की कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं:
• भारतीय सफेद पीठ वाला गिद्ध (White-rumped Vulture)
• हिमालयन गिद्ध (Himalayan Vulture)
• लंबी चोंच वाला गिद्ध (Long-billed Vulture)
• पतली चोंच वाला गिद्ध (Slender-billed Vulture)
ये पक्षी आमतौर पर ऊंचे पेड़ों या चट्टानों पर अपना घोंसला बनाते हैं।
सिनेरियस (Cinereous Vulture) और इजिप्शियन गिद्ध (Egyptian Vulture) जैसी प्रजातियाँ साल भर देखी जाती हैं, जबकि ग्रिफन वल्चर (Griffon Vulture) सर्दियों में हिमालय से प्रवास पर आते हैं।
क्यों घट रही थी गिद्धों की संख्या?
बीते कुछ दशकों में गिद्धों की आबादी में तेजी से गिरावट देखी गई थी।
इसके प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
• डायक्लोफेनाक जैसे पशु दर्दनिवारक दवाओं का उपयोग,
• घोंसले बनाने के लिए सुरक्षित स्थानों की कमी,
• और खाद्य स्रोतों में कमी।
हालांकि, सरकार और वन विभाग द्वारा डायक्लोफेनाक पर प्रतिबंध और संरक्षण कार्यक्रमों के चलते अब इनके पुनर्वास की उम्मीद जागी है।
पर्यावरण की जीत, किसानों की राहत
बारां जिले में गिद्धों की यह वापसी एक प्राकृतिक पुनरुत्थान की तरह है।
यह न सिर्फ जैव विविधता के लिए शुभ संकेत है, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी एक सीख है कि अगर हम चाहें, तो प्रकृति को उसकी खोई हुई विरासत वापस मिल सकती है।
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