प्रधानमंत्री मोदी ने Mahakumbh की शुरुआत को भारतीय संस्कृति का उत्सव बताया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 जनवरी 2025 को Mahakumbh मेला की शुरुआत के अवसर पर इसे भारतीय संस्कृति और मूल्यों को सम्मान देने वाले करोड़ों लोगों के लिए एक ऐतिहासिक दिन बताया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर इस महत्वपूर्ण दिन को लेकर एक विशेष संदेश साझा किया।
प्रधानमंत्री ने Mahakumbh के महत्व को स्वीकार करते हुए लिखा, “भारतीय मूल्यों और संस्कृति को महत्व देने वाले करोड़ों लोगों के लिए एक बहुत ही खास दिन! आस्था, भक्ति और संस्कृति के पवित्र संगम में अनगिनत लोगों को एक साथ लाते हुए महाकुंभ 2025 प्रयागराज में शुरू हुआ। महाकुंभ भारत की शाश्वत आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है और आस्था और सद्भाव का उत्सव मनाता है।” इस संदेश के जरिए प्रधानमंत्री ने महाकुंभ के धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को रेखांकित किया है।
Mahakumbh का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
Mahakumbh मेला, जो विश्व का सबसे बड़ा सार्वजनिक धार्मिक समागम है, भारत की प्राचीन धार्मिक परंपराओं और संस्कृति का प्रतीक है। यह आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है और इसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु, संत, साधु, तपस्वी और तीर्थयात्री भाग लेते हैं। इस मेले में लोग नदियों के संगम में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पाने का विश्वास रखते हैं और आस्था के इस महासंमेलन में भाग लेकर आध्यात्मिक उन्नति की कामना करते हैं।
इस बार Mahakumbh मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित हो रहा है। यह आयोजन न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में आस्था और संस्कृति का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। इस महाकुंभ में भाग लेने के लिए देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं, और यह आयोजन भारतीय समाज के सामूहिक धार्मिक जीवन को समर्पित है।
Mahakumbh और भारतीय सांस्कृतिक विरासत
Mahakumbh मेला भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर को संजोने और उसे समर्पित करने का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक आस्थाओं का नहीं, बल्कि भारतीय समाज के समग्र सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का उत्सव भी है। महाकुंभ के दौरान विभिन्न संतों, साधुओं और धार्मिक गुरुओं के प्रवचन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, पूजा-अर्चना और भव्य शोभायात्राएं भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को दर्शाती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में Mahakumbh को “भारत की शाश्वत आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक” करार दिया, जो हमारे देश की अनमोल धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का कार्य करता है। महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्ष में एक बार होता है, और इस दौरान श्रद्धालु विशेष रूप से प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में आकर स्नान करते हैं। यह स्थल हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
Mahakumbh मेला और विश्वभर के श्रद्धालु
Mahakumbh मेला न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस मेले में भारत के विभिन्न कोनों से लोग आते हैं, साथ ही साथ विदेशी श्रद्धालु भी इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रयागराज पहुंचते हैं। यह आयोजन भारत की धार्मिक विविधता और उसकी विशालता का प्रतीक है, जो पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से परिचित कराता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने Mahakumbh मेला के प्रारंभ को भारतीय आस्था और संस्कृति का उत्सव बताया है। यह आयोजन न केवल धार्मिक उद्देश्य से संबंधित है, बल्कि यह भारतीय जीवन के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को भी उजागर करता है।
Mahakumbh में सुरक्षा और व्यवस्थाएं
Mahakumbh मेला विश्वभर में सबसे बड़े धार्मिक समागमों में से एक है, और इसमें सुरक्षा और व्यवस्थाओं का बेहद महत्व है। इस बार के महाकुंभ में राज्य और केंद्र सरकार ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा, स्वच्छता और सुविधाओं का ध्यान रखते हुए कई विशेष इंतजाम किए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आयोजन को लेकर व्यापक सुरक्षा योजनाएं बनाई हैं, और विभिन्न सरकारी एजेंसियां मिलकर मेले की सफलता सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रही हैं।
इसके अलावा, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाएं और परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं, ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
Mahakumbh मेला: आस्था और सद्भाव का उत्सव
Mahakumbh मेला सिर्फ धार्मिक आस्था का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज में एकता और सद्भाव को भी दर्शाता है। इस समागम में विभिन्न धर्म, जाति और संस्कृति के लोग एक साथ आकर श्रद्धा, भक्ति और आस्था की एकजुटता का परिचय देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस पहलू को भी अपनी पोस्ट में साझा किया, जिसमें उन्होंने महाकुंभ को “आस्था और सद्भाव का उत्सव” बताया।
Mahakumbh मेला भारतीय समाज के सामूहिक एकता और समरसता का प्रतीक है, जिसमें सभी लोग अपनी आस्था को मनाने और साझा करने के लिए एक साथ आते हैं। इस आयोजन से भारतीय समाज में सामूहिकता और समानता के भाव को भी प्रोत्साहन मिलता है।
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