आपदा प्रबंधन – एक ऐसा शब्द जो सुनने में गंभीर लगता है, और होना भी चाहिए। लेकिन क्या होगा अगर इस गंभीर तैयारी में ही अफसर खुद ही संकट में फंस जाएं? कुछ ऐसा ही वाकया सामने आया है राजस्थान के झालावाड़ जिले में, जहां कालीसिंध बांध पर हुई एक Mock Drill असली आपदा का अहसास कराने लगी। इस ‘ड्रिल’ ने प्रशासन की तैयारियों पर तो सवाल खड़े कर ही दिए, साथ ही साबित कर दिया कि आपदा की सूरत में हालात कितने असली और अप्रत्याशित हो सकते हैं।
Kalisingh Dam पर Mock Drill की कहानी
झालावाड़ के कालीसिंध बांध पर प्रशासनिक अमला जुटा था। Mock Drill यानी आपदा की सूरत में बचाव कार्य का अभ्यास। कलेक्टर अजय सिंह राठौड़, एसपी ऋचा तोमर और जिला प्रशासन की टीम मौके पर मौजूद थी। सबकुछ योजना के मुताबिक चल रहा था – कागजों पर लिखी रणनीति, बचाव टीम की तैनाती, राहत कार्यों की मॉक रिहर्सल। लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये Mock Drill अचानक रियल ड्रामा में बदल जाएगी।
जैसे ही टीम बांध के पहले गेट तक पहुंची, वहां पुल के नीचे बसे मधुमक्खियों के छत्ते ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। इन मधुमक्खियों को शायद वहां मौजूद भीड़ या हलचल से खतरा महसूस हुआ। नतीजा? मधुमक्खियों ने हमला कर दिया। वो भी ऐसा हमला कि अफसरों के होश उड़ गए। रेस्क्यू की रिहर्सल कर रहे अधिकारी खुद ‘रेस्क्यू मोड’ में आ गए।
Mock Drill में अधिकारी रियल इमरजेंसी में बदल गए
कलेक्टर राठौड़, एसपी तोमर और अन्य अधिकारी बचाव टीम की अगुवाई करने पहुंचे थे। लेकिन मधुमक्खियों के अचानक हमले ने उन्हें खुद ही बचने पर मजबूर कर दिया। अधिकारी इधर-उधर दौड़ते नजर आए। किसी ने खुद को झाड़ियों में छिपाया तो किसी ने दौड़कर पुल से दूर भागने में ही भलाई समझी। अफसरों के पीछे मधुमक्खियों की फौज थी, और ये Mock Drill अब हकीकत में जान बचाने की दौड़ बन चुकी थी।
Mock Drill बनाम पेपर प्लानिंग की फील्ड हकीकत
इस घटना ने एक अहम सवाल खड़ा किया – क्या हमारी आपदा प्रबंधन की तैयारियां सिर्फ कागजों पर ही मजबूत हैं? Mock Drill का मकसद यही होता है कि संकट की घड़ी में अधिकारी और कर्मचारी किस तरह हालात को संभालेंगे, इसका अभ्यास किया जाए। लेकिन झालावाड़ की इस ड्रिल में अफसर खुद ही संकट में फंस गए। मधुमक्खियों ने दिखा दिया कि असली हालात में कागजी प्लानिंग कितनी काम आती है।
एक अधिकारी ने कहा – “भईया, हम तो अभ्यास करने आए थे, लेकिन खुद को ही संभालना पड़ गया। मधुमक्खियां इतनी तेज थीं कि किसी को सोचने का मौका ही नहीं मिला।”
अव्यवस्था के बावजूद Mock Drill सफल घोषित
हैरानी की बात ये रही कि अधिकारियों की इस आपाधापी और ड्रिल के बीच अचानक बने असली संकट के बावजूद इस Mock Drill को औपचारिक रूप से सफल घोषित कर दिया गया। यानी भले ही मैदान में अफसर खुद जान बचाते नजर आए, लेकिन कागजों पर ये Mock Drill पूरी और सफल मानी गई। ये फैसला एक तरह से प्रशासन की मानसिकता को भी उजागर करता है – जहां असल में चाहे हालात कुछ भी हों, कागजों पर कामयाबी दर्ज कर ली जाती है।
मधुमक्खियों से भागे… बड़े संकटों के बारे में क्या?
झालावाड़ की इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया – जब मधुमक्खियों जैसे छोटे संकट से ही अफसर घबरा गए, तो किसी बड़े प्राकृतिक या मानवीय आपदा में हालात कैसे संभालेंगे? कागजों पर तैयारियां चाहे जितनी पुख्ता क्यों न हों, मैदान की सच्चाई इससे कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है। ये Mock Drill इस बात का जीता-जागता सबूत बन गई।
झालावाड़ के संवाददाता रंजीतदास ने बताया – “बांध पर Mock Drill हो रही थी। मकसद था अधिकारियों और टीम को संकट की घड़ी में हालात संभालने का अभ्यास कराना। लेकिन मधुमक्खियों के हमले ने इस अभ्यास को ही असली संकट में बदल दिया। अफसरों को खुद ही अपनी जान बचानी पड़ी। इस घटना ने यह तो साबित कर ही दिया कि कागजों की तैयारियों और असलियत में बहुत फर्क होता है।”
Mock Drill में हास्य और गंभीरता का मिश्रण
इस पूरी घटना ने प्रशासन की तैयारियों पर सवाल तो खड़े कर ही दिए, लेकिन इसके हास्य पहलू को भी लोग नजरअंदाज नहीं कर पा रहे। सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर चुटकुले और मीम्स वायरल हो रहे हैं। लोग कह रहे हैं – “बांध पर Mock Drill थी, संकट का एहसास कराना था… पर अफसर खुद दौड़ पड़े, मधुमक्खियों से खुद को बचाना था…”
कई लोग यह भी पूछ रहे हैं – अगर मधुमक्खियों से इतना घबरा गए, तो भूकंप, बाढ़ या अन्य बड़ी आपदाओं में क्या करेंगे? ये सवाल प्रशासन की तैयारियों पर एक तीखा कटाक्ष है।
इस Mock Drill से वास्तविक सबक
झालावाड़ की इस Mock Drill ने साफ कर दिया है कि कागजी योजनाएं और असल हालात दो अलग-अलग चीजें होती हैं। आपदा की घड़ी में अफसरों का पहला कर्तव्य खुद को बचाना नहीं, बल्कि हालात को संभालना होता है। मधुमक्खियों जैसी छोटी आपदा ने प्रशासन की तैयारियों की पोल खोल दी। अब जरूरत है कि ऐसी Mock Drills को सिर्फ औपचारिकता न माना जाए, बल्कि इन्हें गंभीरता से लिया जाए। असली हालात के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार रहना ही असली तैयारी है।
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