Sambhar की प्यास: अब नमक के नहीं, पानी के लिए बदनाम

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“कभी नमक से मशहूर था Sambhar, आज प्यास से बदनाम हो गया है। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि अब लोग पानी मांगने नहीं, पलायन की तैयारी करने लगे हैं। राजस्थान के दिल में बसी ऐतिहासिक नगरी Sambhar अब प्यास से टूटी उम्मीदों की कहानी बन गई है। राजस्थान का सांभर, जहां कभी नमक के लिए देशभर में चर्चा थी, आज वहीं पानी की एक बूंद के लिए लोग तरस रहे हैं…. हालात इतने भयावह हो चुके हैं कि सैकड़ों परिवारों ने सामूहिक पलायन का ऐलान कर दिया है… चारभुजा की गली हो, जोशियों की गली या लक्ष्मीनारायण मंदिर के आसपास की कॉलोनियां—हर गली में पानी के लिए हाहाकार मचा है। जलदाय विभाग की लापरवाही का आलम ये है कि सप्लाई 72 से 96 घंटे में एक बार दी जाती है। और तब भी कई घरों में एक बाल्टी पानी तक नहीं पहुंचता।

Sambhar: जब सपनों का घर बोझ बन जाए

बड़ी उम्मीदों से एक मेहनती आदमी अपने जीवन में कमाई पूरी पूंजी एक मकान को खड़ा करने में लगा देता है…. बड़ी खुशी के साथ गृह प्रवेश करता है… बड़े हर्षों उल्लास के साथ उस मकान को घर बनाता है…. मगर क्या बीते उसपे जब उसे उसी घर के बाहर लिखवाना पड़ जाए… यह मकान बिकाऊ है… औऱ कारण हो… पानी की भीषण समस्या….. किसी मेहनती इंसान के लिए उसका घर उसकी सबसे बड़ी कमाई होता है। सालों की मेहनत से खड़ी की गई एक-एक ईंट, गृह प्रवेश की खुशी, उसमें बसते रिश्ते… मगर क्या बीतती है उस पर जब उसी घर के बाहर पोस्टर लगाना पड़े—”यह मकान बिकाऊ है”?

Sambhar: गली-गली प्यास का मातम, लोगों ने लगाए पोस्टर

आप जे ये देख रहे हैं… ये पोस्टर… ‘मकान बिकाऊ है’—ये पोस्टर पानी की मांग नहीं, सरकार की नाकामी पर तमाचा हैं।” यहाँ स्थानीय लोगों से जब बात कि गई तो उनका कहना है कि, हम मजबूर है, और इस मजबूरी ने हमारी मजबूती को भी तोड़कर रख दिया है। वहीं, जब इस समस्या को लेकर सभी लोगों ने मीटिंग रखी तो लोगों ने एकमत से तय किया कि अब वो अपने मकान बेचकर इस शहर को छोड़ देंगे। क्योंकि जहां प्यास बुझती नहीं, वहां उम्मीदें भी नहीं टिकतीं। वहीं, महिलाओं का कहना है कि, “बच्चे बीमार हो रहे हैं, गर्मी में एक बूंद तक नहीं मिलती, हम मजबूर हैं, सरकार से थक चुके हैं।

Sambhar: सवाल सिर्फ पानी का नहीं, भरोसे का है

पानी सिर्फ जीवन नहीं होता, ये भरोसे की नींव होता है। और जब ये भरोसा ही टूट जाए, तो लोग घर नहीं छोड़ते, शहर छोड़ देते हैं। “सांभर की प्यास अब आँसू में बदल चुकी है। सवाल सिर्फ सप्लाई का नहीं, सवाल सिस्टम की संवेदनहीनता का है। क्या सरकार सिर्फ तब जागेगी जब हर गली खाली हो जाएगी? या फिर किसी दिन ये सूखा सिर्फ पानी का नहीं, लोकतंत्र का भी हो जाएगा?” “पानी सिर्फ एक सुविधा नहीं, जीवन की पहली जरूरत है। और जब वो ही न मिले, तो लोगों का सिस्टम से भरोसा उठ जाता है। सांभर के लोगों ने अब अपना भरोसा बचाने के लिए घर छोड़ने का फैसला कर लिया है। सवाल ये है—क्या सरकार अब भी सोएगी या अब सचमुच जागेगी?

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