Sudan में जारी संघर्ष: अर्धसैनिक बलों ने सेना पर उत्तरी दारफुर में हवाई हमले का आरोप लगाया
Sudan में दो साल से चल रहे भीषण संघर्ष में अर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) और सूडानी सशस्त्र बलों (एसएएफ) के बीच तनाव और हिंसा की स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। मंगलवार को आरएसएफ ने एक महत्वपूर्ण दावा करते हुए सूडानी सेना पर उत्तरी दारफुर राज्य के तोरा बाजार पर बमबारी करने का आरोप लगाया।
आरएसएफ के अनुसार, इस हमले में सैकड़ों लोग मारे गए और दर्जनों घायल हुए हैं। यह घटना Sudan के लिए एक और गंभीर संकट की ओर इशारा करती है, जिससे नागरिकों के बीच डर और अनिश्चितता फैल रही है।
हमले में सैकड़ों लोगों की मौत: क्या है पूरा मामला?
Sudan ट्रिब्यून के अनुसार, उत्तरी दारफुर की राजधानी एल फशर से उत्तर में स्थित तोरा बाजार पर किए गए इन हवाई हमलों में 100 से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। इस हमले ने पूरे Sudan में भारी चिंता पैदा कर दी है, लेकिन सूडानी सेना ने इस दावे पर अब तक कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। इसका मतलब यह हो सकता है कि सेना इस मामले को नकारने की कोशिश कर रही है या फिर वह इसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मान रही है।
यह बमबारी एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम को चिन्हित करती है, क्योंकि Sudan में दोनों पक्षों के बीच हिंसा और संघर्ष पहले ही एक गंभीर स्तर पर पहुँच चुका है। अर्धसैनिक बलों द्वारा हवाई हमले का आरोप, सुरक्षा और असैन्य बुनियादी ढांचे के साथ-साथ आम नागरिकों की जान को खतरे में डालने की ओर इशारा करता है, जो पहले से ही कई संकटों का सामना कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र की चिंता और बढ़ती मानवाधिकार उल्लंघन की चिंता
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने इस घटनाक्रम पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने सूदानी नागरिकों पर हो रहे लगातार हमलों को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। सोमवार को हुए हवाई हमलों और रविवार को खार्तूम मस्जिद पर आरएसएफ के तोपखाने हमले का हवाला देते हुए संयुक्त राष्ट्र ने इस संघर्ष में नागरिकों की बढ़ती संख्या में जानमाल के नुकसान की ओर इशारा किया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने Sudan में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन और युद्ध अपराधों की गंभीरता को लेकर चेतावनी दी है।
सूडानी सेना और आरएसएफ के बीच बढ़ते संघर्ष के संकेत
आरएसएफ और सूडानी सेना के बीच लड़ाई का सिलसिला लंबे समय से जारी है, और दोनों पक्ष लगातार एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं। मंगलवार को, सूडानी सेना ने अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों और आरएसएफ के कब्जे वाले क्षेत्रों के बीच का स्पष्ट विभाजन दिखाने के लिए एक नक्शा जारी किया। इस नक्शे में कुछ क्षेत्रों को हरे रंग से चिह्नित किया गया है, जो सूडानी सेना के पूर्ण नियंत्रण में हैं, और कुछ क्षेत्रों को लाल रंग में दर्शाया गया है, जो आरएसएफ के नियंत्रण में हैं। इस नक्शे के माध्यम से सूडानी सेना ने अपनी स्थिति को स्पष्ट किया और यह भी संकेत दिया कि वे विद्रोहियों के खिलाफ अपनी सैन्य कार्रवाई को जारी रखेंगे।
सीमा पर नियंत्रण संघर्ष: रणनीतिक लाभ की जंग
सूडानी सेना ने हाल ही में कुछ क्षेत्रों में रणनीतिक लाभ हासिल किया है, खासकर खार्तूम के उत्तर में ओमदुरमैन क्षेत्र में। सेना ने सितंबर में हवाई हमलों और जमीनी हमलों का सहारा लेकर राजधानी खार्तूम के कुछ हिस्सों पर पुनः कब्जा किया। इसके बाद अक्टूबर में, सेना ने सिन्नर राज्य के अधिकांश शहरों पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया। इन हालिया सफलताओं ने सूडानी सेना को एक सकारात्मक दिशा में बढ़ने का विश्वास दिया है।
हालांकि, यह संघर्ष अभी भी जारी है और आरएसएफ की ताकत से मुकाबला करना सूडानी सेना के लिए एक बड़ा चुनौती बना हुआ है। इस संघर्ष में भाग लेने वाले दोनों पक्षों के लिए आगामी दिन कठिन हो सकते हैं, क्योंकि वे अपनी सामरिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
मानवीय संकट और विस्थापन की स्थिति
Sudan का यह संघर्ष न केवल सैन्य और राजनीतिक संकट है, बल्कि यह एक मानवीय संकट भी बन चुका है। Sudan में लाखों लोग संघर्ष के कारण विस्थापित हो चुके हैं, और ये संख्या लगातार बढ़ रही है। Sudan की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पहले ही चरमरा चुकी है, और इससे हताहतों की संख्या की सही पुष्टि करना कठिन हो गया है। कई क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, और युद्ध से प्रभावित लोगों के लिए मदद पहुंचाना एक चुनौती बन चुका है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका और Sudan के भविष्य पर सवाल
इस संघर्ष के गंभीर होते जाने के साथ, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका भी और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने Sudan सरकार और अर्धसैनिक बलों से अपील की है कि वे तुरंत हिंसा को समाप्त करें और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। इसके साथ ही, Sudan के भविष्य को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, और यह स्पष्ट है कि इस संघर्ष का समाधान केवल संवाद और राजनीतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ही संभव है।
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