भारत कैसे करेगा Trump के ‘मेक इन अमेरिका’ योजना का मुकाबला?
अमेरिकी राष्ट्रपति Trump की ‘मेक इन अमेरिका’ योजना, जो अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है, वैश्विक व्यापार जगत पर गहरे प्रभाव डालने वाली है। यह योजना उन देशों के लिए एक चेतावनी है जो अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ाने के लिए चीन के समान बनने की कोशिश कर रहे हैं। विशेष रूप से भारत, जिसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक अहम स्थान प्राप्त करने की उम्मीद है, को इस चुनौती का सामना करना पड़ेगा। Trump की नीति के सामने भारत को क्या कदम उठाने होंगे, यह समझना महत्वपूर्ण है, ताकि वह इस वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खुद को बनाए रख सके।
‘मेक इन अमेरिका’ की रणनीति: क्या है Trumpकी योजना?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘मेक इन अमेरिका’ योजना के तहत मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए पुरस्कार और दंड की नीति अपनाई है। Trump का उद्देश्य यह है कि कंपनियां अमेरिका में अपने कारखाने स्थापित करें, ताकि अमेरिकी श्रमिकों को रोजगार मिले।
यदि कंपनियां ऐसा नहीं करतीं, तो उनके द्वारा अमेरिका में भेजे जा रहे माल पर ऊंचे शुल्क लगाए जाएंगे। Trump ने हाल ही में दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर अपने वीडियो संबोधन में स्पष्ट किया कि उनका संदेश बहुत सरल है, “अमेरिका में अपना उत्पाद बनाएं और हम आपको दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे कम कर देंगे।” इसके साथ ही, उन्होंने निर्माण करने वाली कंपनियों के लिए 15% कॉर्पोरेट टैक्स दर का प्रस्ताव भी दिया, जो उन्हें और अधिक आकर्षित करने के लिए था।
यह नीति अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग के लिए एक बड़ा बदलाव लेकर आ सकती है, जो दशकों से वैश्विक स्तर पर एशिया, खासकर चीन, पर निर्भर रहा है। अब Trump इस स्थिति को बदलने के लिए एशिया में बनी वस्तुओं पर शुल्क लगाने की रणनीति पर जोर दे रहे हैं।
भारत के लिए चुनौती और अवसर
भारत के लिए Trump की इस योजना को लेकर मिश्रित संकेत हैं। जहां एक ओर यह अमेरिका में उत्पादन बढ़ाने का अवसर प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर भारत के लिए यह चुनौती भी है। भारत को अब अपने सप्लाई चेन को मजबूत करने और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का हल ढूंढने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।
भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और वैश्विक आपूर्ति चेन
भारत की मैन्युफैक्चरिंग क्षमताएं पिछले कुछ वर्षों में कई पहलुओं में बढ़ी हैं, लेकिन अब इसे Trump के ‘मेक इन अमेरिका’ अभियान के जवाब में और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना पड़ेगा। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसका उत्पादन और आपूर्ति चेन विश्व स्तर पर सक्षम हो। खासकर, तैयार माल के लिए वैश्विक आपूर्ति चेन का पर्याप्त नेटवर्क विकसित करना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
क्या भारत कर सकता है मैन्युफैक्चरिंग में चीन का मुकाबला?
अमेरिका में श्रम लागत अधिक होने के कारण Trump के मैन्युफैक्चरिंग अभियान का भारत पर प्रत्यक्ष प्रभाव उतना गहरा नहीं हो सकता। भारत में श्रम लागत अपेक्षाकृत कम है, जो उसे वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरने का एक बड़ा मौका देता है। भारत में पहले से ही कुछ प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्रों में अच्छी प्रतिस्पर्धा मौजूद है, जैसे स्मार्टफोन, मोटरसाइकिल, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स। लेकिन, अब भारत को इन क्षेत्रों में और सुधार करना होगा और मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया को अधिक आधुनिक और कुशल बनाना होगा, ताकि वह अमेरिकी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।
भारत का वैश्विक आपूर्ति चेन में योगदान
भारत का योगदान वैश्विक आपूर्ति चेन में अब बढ़ रहा है, और ‘मेक इन अमेरिका’ जैसी योजनाओं के बावजूद, भारत के लिए यह एक अवसर हो सकता है। अमेरिकी कंपनियां पहले ही एप्पल और नवीदा जैसी बड़ी कंपनियों के जरिए भारत में उत्पादन कर रही हैं। एप्पल के उत्पाद कैलिफोर्निया में डिज़ाइन होते हैं, लेकिन निर्माण की प्रक्रिया भारत और अन्य देशों में होती है। भारत को अब अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ऐसे और अधिक निवेश आकर्षित करने की दिशा में काम करना होगा, जिससे अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की योजना को चुनौती दी जा सके।
भारत की नीति: क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
भारत को Trump की योजना का मुकाबला करने के लिए कुछ प्रमुख कदम उठाने होंगे। सबसे पहले, उसे अपनी मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए निवेश आकर्षित करने होंगे। इसके साथ ही, भारत को बुनियादी ढांचे में सुधार और श्रमिकों के कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इन पहलुओं पर तेजी से काम करने से भारत अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को और मजबूत बना सकता है और अमेरिकी कंपनियों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन सकता है।
भारत को अपनी नीतियों को अधिक उदार और प्रतिस्पर्धात्मक बनाना होगा, ताकि वह वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग के केंद्र के रूप में उभर सके। इसके लिए सरकार को उत्पादन से जुड़ी नीतियों को सरल बनाने, निवेश के लिए वातावरण को अनुकूल बनाने, और तकनीकी सुधारों पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
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