राजस्थान की राजधानी जयपुर के हृदय में स्थित प्राकृतिक जंगल ‘डोल का बाड़’ (Dol Ka Badh) इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है। जहां एक ओर सरकार “विकसित भारत” की बात कर रही है, वहीं दूसरी ओर 2500 से अधिक पेड़ों और हजारों पक्षी प्रजातियों वाले इस हरित क्षेत्र के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरण प्रेमी, स्थानीय निवासी और कार्यकर्ता इस क्षेत्र को बचाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
राजनीति में पेड़ों की सियासत?
इस पूरे मामले में अब राजनीतिक बयानबाज़ी और वादों के पलटाव की भी बातें सामने आ रही हैं। बात 9 सितंबर 2023 की है, जब आज की डिप्टी सीएम दिया कुमारी ने एक ट्वीट कर डोल का बाड़ में फिनटेक पार्क बनाए जाने की योजना की आलोचना की थी। उन्होंने लिखा था:
“जयपुर के डोल का बाड़ (Dol Ka Badh) में शहरी वन क्षेत्र को नष्ट कर फिनटेक पार्क बनाने की योजना दुर्भाग्यपूर्ण है। मेरी सरकार से मांग है कि इसे संरक्षित किया जाए जिससे 2500 पेड़ और हजारों पक्षी प्रजातियां संरक्षित हो सकें।” तब कांग्रेस सरकार थी। आज भाजपा की सरकार है, लेकिन स्थितियाँ नहीं बदलीं। सीएम भजनलाल शर्मा का बयान और विरोधाभासहाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने कहा:
“इस साल हमें राजस्थान में 11 करोड़ पौधे लगाने हैं। अगर हमारा पर्यावरण ठीक रहेगा तो बारिश भी अच्छी होगी।” इस बयान ने और ज्यादा सवाल खड़े कर दिए। डोल का बाड़ के 2500 पेड़ यदि बचा लिए जाएं तो पौधारोपण का लक्ष्य 10 करोड़ 99 लाख 97 हजार 500 पौधों तक रह जाएगा! सवाल यह नहीं कि पौधे कितने लगाए जाएंगे, सवाल यह है कि पहले से मौजूद स्वस्थ पेड़ों को क्यों काटा जा रहा है?

विकसित भारत की कीमत: पेड़ों की बलि?
स्थानीय जनता, छात्र, और पर्यावरण कार्यकर्ता डोल का बाड़ (Dol Ka Badh) को बचाने के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। तेज गर्मी और धूप में भी प्रदर्शन हो रहे हैं। लोग पूछ रहे हैं:
“क्या शहरी विकास का मतलब शांति, हरियाली और जैव विविधता का अंत है?” सरकार द्वारा PM यूनिटी मॉल, फिनटेक पार्क, होटल और राजस्थान मंडपम बनाने की योजना इस 100 एकड़ क्षेत्र में है, जो जैविक और पारिस्थितिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।
डोल का बाड़ (Dol Ka Badh) : केवल जंगल नहीं, भावना है
डोल का बाड़ (Dol Ka Badh) सिर्फ एक जंगल नहीं, यह जयपुर की फेफड़े की तरह है। यहां की हरी-भरी छतरियाँ, पक्षियों की चहचहाहट, और शांत वातावरण ने इसे सैकड़ों लोगों का मानसिक और शारीरिक राहत स्थल बना रखा है।
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि: “मॉल और पार्क कहीं भी बनाए जा सकते हैं, लेकिन डोल का बाड़ को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता।”
क्या सरकार फिर से सोचेगी?
अब सवाल उठता है: क्या सरकार अपने पूर्व वादों पर अमल करेगी? क्या विकास की दौड़ में पर्यावरण की बली दी जाएगी? या फिर एक नई मिसाल पेश करते हुए सरकार कोई वैकल्पिक स्थल तय करेगी? जब देश विकसित भारत की ओर बढ़ रहा है, तब ऐसे निर्णयों में संवेदनशीलता और दूरदर्शिता दोनों की ज़रूरत है।
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