Nekpur हत्याकांड: जब एक सपना, एक आवाज़ और एक ज़िंदगी खामोश

By admin
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1 अक्टूबर 2019 की सुबह, जब आम लोग अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे, तब ग्रेटर नोएडा की एक सोसाइटी के बाहर गोली चलने की आवाज़ ने पूरे इलाके को दहला दिया।
पीड़िता थीं — सुषमा Nekpur, मशहूर रागिनी गायिका, जो हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक मंचों पर एक जानी-पहचानी आवाज़ बन चुकी थीं। लेकिन उस दिन सिर्फ एक कलाकार नहीं मारी गई — एक सपना भी दफन हो गया।

राजनीति में कदम रखना बना जानलेवा?

सुषमा Nekpur का नाम कला जगत में तेजी से उभरा था। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षाएं सिर्फ मंच तक सीमित नहीं थीं।
जानकारी के अनुसार, वह राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती थीं और एक राष्ट्रीय पार्टी से संपर्क में थीं।
1 अक्टूबर को ही वह बुलंदशहर में एक राजनीतिक मुलाकात कर लौटी थीं।
वह उत्साहित थीं, शायद कोई नया मोड़ आने वाला था ज़िंदगी में।
लेकिन नियति को कुछ और मंज़ूर था।

मर्डर प्लान या मूक चेतावनी?

जैसे ही सुषमा की कार ग्रेटर नोएडा की एक सोसाइटी के बाहर रुकी, उन्होंने ड्राइवर सचिन से कहा —
“एक मिनट रुको, मैं दूध लेकर आती हूं…”
बस इतना ही कहा था उन्होंने, और उसी दौरान दो नकाबपोश बाइक सवार बदमाशों ने उन पर ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं।
सुषमा को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

जांच के घेरे में सियासत, संबंध और साज़िश

जांच शुरू हुई, और जैसे-जैसे परतें खुलती गईं, शक की सुई कई ओर घूमी।
लिव-इन पार्टनर गजेंद्र भाटी — जिनके साथ सुषमा रह रही थीं, जांच के दायरे में आए।
रिश्तों में तनाव था या धोखा?
या फिर सुषमा की राजनीति में एंट्री किसी प्रभावशाली शख्स या गुट को नागवार गुज़री?
पुलिस ने कई बिंदुओं पर जांच की —
• प्रेम संबंधों में खटास
• राजनीतिक रंजिश
• पेशेवर जलन
लेकिन आज, इतने साल बाद भी यह केस अनसुलझा है।

क्या सुषमा की हत्या एक “मेसेज” थी?

सवाल बड़ा है —

क्या सुषमा की मौत महज़ एक व्यक्तिगत दुश्मनी का नतीजा थी?
या फिर वह एक ‘political target’ थीं — जिसे सिस्टम ने चुपचाप खत्म कर दिया?
जो भी हो, ये हत्याकांड सिर्फ एक महिला कलाकार की मौत नहीं था, यह सत्ता, समाज और साज़िश के बीच घिरी उस महिला की कहानी है, जो सिर्फ आगे बढ़ना चाहती थी।

इंसाफ़ कब मिलेगा?

आज भी Nekpur गांव और कला जगत में सुषमा की यादें ज़िंदा हैं।
उनकी हत्या पर न्याय की मांग कई बार उठी, लेकिन प्रगति शून्य के बराबर है।
कोर्ट में केस लंबित है, लेकिन जवाब किसी के पास नहीं।

एक कलाकार, एक सपना, एक साज़िश — और अब एक सवाल

सुषमा Nekpur की हत्या एक मिसाल बन गई है —
उस खामोश चीख की, जो आज भी इंसाफ़ की राह देख रही है।
क्या ये मामला भी उन हजारों मामलों में शामिल हो जाएगा,
जो एक फाइल में दबी आवाज़ बनकर रह जाते हैं?
या फिर कभी आएगा ऐसा दिन, जब सच्चाई बाहर आएगी और सुषमा को न्याय मिलेगा?
वक्त ही बताएगा…

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