Supreme Court ने यासीन मलिक को जम्मू में शारीरिक पेशी की अनुमति देने से किया इनकार

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Supreme Court ने यासीन मलिक की जम्मू में शारीरिक पेशी की अनुमति देने से किया इनकार

Supreme Court ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को जम्मू की अदालत में शारीरिक रूप से पेश करने की अनुमति देने से मना कर दिया। अदालत ने आदेश दिया कि मलिक को तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गवाहों से जिरह करने की अनुमति दी जाएगी। यह फैसला केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया, जिसमें मलिक को जम्मू में शारीरिक रूप से पेश करने के जम्मू की निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी।

सीबीआई ने उठाए सुरक्षा संबंधी सवाल

सीबीआई का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मलिक की जम्मू यात्रा से जुड़ी गंभीर सुरक्षा चिंताओं का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि मलिक को जम्मू लाना न केवल सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक हो सकता है, बल्कि इससे क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति भी प्रभावित हो सकती है।

इस मुद्दे पर ध्यान देते हुए, Supreme Court ने यह माना कि मलिक की शारीरिक पेशी की अनुमति देना अनुचित होगा, खासकर तब जब केंद्र सरकार ने दिसंबर 2024 में एक आदेश जारी किया था, जिसमें मलिक की दिल्ली से एक साल तक आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का विकल्प

Supreme Court ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (वीसी) की सुविधा दोनों स्थानों—निचली अदालत और तिहाड़ जेल में उपलब्ध है। अदालत ने पुष्टि की कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय तथा तिहाड़ जेल अधीक्षक की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि गवाहों से जिरह के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग किया जा सकता है। Supreme Court ने बीएनएसएस की धारा 530 का हवाला देते हुए यह भी कहा कि गवाहों की वर्चुअल जिरह की अनुमति दी जा सकती है, और उच्च न्यायालय के पास आपराधिक मुकदमों में वीसी के उपयोग के लिए दिशानिर्देश हैं।

मलिक ने आतंकवाद से इनकार किया

Supreme Court: मलिक, जो तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में पेश हुए थे, ने अपनी आपराधिक गतिविधियों से इनकार करते हुए कहा, “मैं आतंकवादी नहीं हूं, मैं एक राजनीतिक नेता हूं।” हालांकि, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने स्पष्ट किया कि अदालत इस समय उनके अपराधों पर कोई निर्णय नहीं दे रही है, बल्कि यह केवल यह तय कर रही है कि गवाहों से जिरह के लिए कौन सा तरीका उपयुक्त रहेगा।

मलिक की सुरक्षा स्थिति और पिछली घटनाएं

Supreme Court: सीबीआई ने बताया कि मलिक को जम्मू ले जाने का विरोध करने का एक और मुख्य कारण गवाह की हत्या था। सॉलिसिटर जनरल ने मलिक को एक अत्यधिक जोखिम वाला व्यक्ति बताया, जिनका कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद से संबंध हैं और वह कई बार पाकिस्तान जा चुके हैं। Supreme Court ने यह भी याद दिलाया कि जुलाई 2023 में जब तिहाड़ जेल अधिकारियों ने अदालत के आदेश की गलत व्याख्या की थी, तो मलिक को शारीरिक रूप से पेश किया गया था, जिसके कारण न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने खुद को मामले से अलग कर लिया था।

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा सुनिश्चित करने का आदेश

Supreme Court: इसके बाद, शीर्ष अदालत ने जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय को निर्देश दिया कि वह मलिक के मुकदमे के लिए उचित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाएं सुनिश्चित करें। अदालत ने कहा कि सुरक्षा संबंधी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रयोग अधिक प्रभावी और सुरक्षित तरीका है। यह आदेश उस समय आया जब मलिक ने बार-बार व्यक्तिगत रूप से पेश होने की मांग की थी, और वकील नियुक्त करने से इनकार किया था। मलिक ने इसे “चालबाजी” करने का प्रयास बताते हुए खुद को पेश करने की इच्छा जताई थी।

दिल्ली में मलिक की सजा और एनआईए की मांग

Supreme Court: दिल्ली की एनआईए अदालत ने मई 2022 में यासीन मलिक को साजिश रचने, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने और आतंकी फंडिंग के आरोपों में दोषी करार दिया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अलावा, एनआईए ने दिल्ली उच्च न्यायालय में मलिक के लिए मौत की सजा की मांग की है। यह सब तब हुआ जब मलिक को कई बार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा गया है, और उनके खिलाफ की गई कार्रवाई को अब व्यापक रूप से आतंकवाद से जुड़ा हुआ माना जा रहा है।

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