Jaidev का खुलासा: संगीतकार नहीं, अभिनेता बनना चाहते थे

Jaidev

Jaidev: अभिनेता से संगीतकार बनने तक का सफर

संगीत के जादू से लाखों दिलों को छूने वाले संगीतकार Jaidev का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है। अपने संगीतबद्ध गीतों के जरिये श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाले Jaidev के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनकी पहचान एक संगीतकार के रूप में बनी। हालांकि, उनका सपना कहीं न कहीं अभिनेता बनने का था। इस लेख में हम उनके जीवन के उस पहलू को देखेंगे, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और संघर्ष के बाद संगीत के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया।

बचपन से ही फिल्मी दुनिया की ओर रुझान

Jaidev का जन्म 03 अगस्त 1919 को लुधियाना में हुआ था। बचपन से ही उनका रूझान फिल्म इंडस्ट्री की ओर था। फिल्मी दुनिया से उनका आकर्षण इतना था कि वे हमेशा अभिनेता बनने का सपना देखते थे। बचपन के दिनों में ही उन्होंने अपनी फिल्मों के प्रति दीवानगी का इज़हार किया और इस मार्ग पर चलने का फैसला किया। इस सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही घर से भागकर फिल्म नगरी मुंबई की ओर रुख किया।

मुंबई में अभिनेता बनने की कोशिश

15 वर्ष की उम्र में Jaidev मुंबई आ गए, जहां उनका मकसद अभिनेता के रूप में पहचान बनाना था। उन्होंने वाडिया फिल्म्स द्वारा निर्मित आठ फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया। इस दौरान उनका अभिनय करियर आगे बढ़ने की बजाय रुक गया, लेकिन उनकी रुचि और उत्साह में कोई कमी नहीं आई। अभिनय में अपनी राह बनाने के बावजूद, जयदेव ने संगीत के प्रति भी अपना प्रेम जारी रखा और कृष्णाराव तथा जर्नादन राव से संगीत की शिक्षा ली।

पिता की बीमारी और घर लौटने का निर्णय

कुछ वर्षों बाद, Jaidev को परिवार की जिम्मेदारी का एहसास हुआ। उनके पिता बीमार हो गए थे, और इस वजह से उन्हें मुंबई छोड़कर अपने घर लुधियाना लौटने का निर्णय लेना पड़ा। जयदेव ने अपने पिता की देखभाल की, लेकिन उनकी अकस्मात मृत्यु के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। इसके बाद उन्होंने अपनी बहन की शादी करवाई और फिर संगीत के क्षेत्र में अपने सपने को पूरा करने के लिए एक नए उत्साह के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया।

लखनऊ में संगीत की शिक्षा

1943 में Jaidev लखनऊ चले गए, जहां उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से संगीत की शिक्षा ली। लखनऊ में समय बिताने के बाद, Jaidev का विश्वास और भी मजबूत हुआ कि संगीत के क्षेत्र में ही उनका भविष्य है। उस्ताद अली अकबर खान से प्राप्त संगीत शिक्षा ने Jaidev के संगीत में गहराई और भावनाओं का मिश्रण दिया, जो बाद में उनके संगीत के संगीतबद्ध गीतों में नजर आया।

मुंबई लौटकर संगीतकार के रूप में नया सफर

Jaidev ने संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए मुंबई वापस लौटने का फैसला किया। 1951 में उन्हें नवकेतन फिल्म्स के बैनर तले निर्मित फिल्म “आंधिया” में सहायक संगीतकार के रूप में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म के बाद उन्होंने महान संगीतकार एस.डी. बर्मन के सहायक के रूप में भी काम किया, जहां उन्होंने संगीत की बारीकियों को और गहरे से समझा। एस.डी. बर्मन के साथ काम करने से उनके संगीत में और भी निखार आया और उनकी पहचान एक प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में बनने लगी।

संगीतकार के रूप में Jaidev की पहचान

Jaidev का संगीत भारतीय सिनेमा में एक नई आवाज लेकर आया। उनके संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत और फिल्मी संगीत का बेहतरीन संगम था। उन्होंने फिल्मों के लिए कई प्रसिद्ध गीत दिए, जिनमें संगीत की लय और भावनाओं का सही मिश्रण था। उनके संगीतबद्ध गीतों की धुनें आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं।

Jaidev के संगीत ने न सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री को नई दिशा दी, बल्कि उन्होंने फिल्म संगीत को एक नए स्तर पर पहुंचाया। उनके द्वारा संगीतबद्ध किए गए गीतों में गहराई, संवेदनशीलता और भारतीय संगीत की शास्त्रीयता का प्रभाव था। इसके अलावा, उनकी संगीत रचनाओं ने भारतीय फिल्म संगीत में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

Jaidev का योगदान और विरासत

Jaidev का योगदान भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। उनका संगीत न केवल श्रोताओं को आकर्षित करता था, बल्कि उनके संगीत में एक ऐसी बात थी जो दिल को छू जाती थी। वे एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने भारतीय संगीत को अपनी फिल्मों के जरिए नए आयाम दिए।

उनकी फिल्मों में संगीत का समावेश और उनके गीतों का संकलन हमेशा एक मिसाल बना रहेगा। Jaidev की सफलता एक संगीतकार के रूप में उनके कठिन परिश्रम, संघर्ष और संगीत के प्रति उनके प्यार का परिणाम था। आज भी उनकी धुनों और गीतों को याद किया जाता है और वे भारतीय फिल्म संगीत के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे।

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