भारत में बिखरते परिवारों पर SC ने क्यों किया चिंता व्यक्त?

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SC: भारत में वसुधैव कुटुम्बकम की परिभाषा और परिवारों के बिखरते रिश्ते

SC: भारत में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का आदर्श प्राचीन समय से चला आ रहा है, जिसका अर्थ है कि सम्पूर्ण संसार एक परिवार के समान है। यह विचारणा भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है, जहां परिवारों का महत्व अत्यधिक होता है और इसे समाज की नींव माना जाता है। लेकिन वर्तमान समय में यह आदर्श धीरे-धीरे धुंधला पड़ता जा रहा है, और अब परिवारों की सुदृढ़ता और एकता को लेकर गंभीर चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं। हाल ही में, SC ने एक मां और बेटे के बीच संपत्ति विवाद को लेकर जो टिप्पणी की, वह इस सामाजिक बदलाव की ओर इशारा करती है।

SC का चिंतन: परिवार व्यवस्था में बिगड़ती एकता

SC की बेंच ने एक अर्जी की सुनवाई के दौरान परिवार व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। जस्टिस पंकज मित्तल और एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा कि आज के समय में ऐसा प्रतीत होता है कि लोग अपने परिवार के निकटतम सदस्यों के साथ भी नहीं रहना चाहते। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया कि भारत में आज ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करना अधिक कठिन हो गया है, क्योंकि परिवारों में भी एकता समाप्त होती जा रही है।

समतोला देवी और उनके बेटे के बीच संपत्ति विवाद

SC: इस मामले की शुरुआत सुल्तानपुर की समतोला देवी द्वारा दायर की गई याचिका से हुई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे कृष्ण कुमार को घर से निकालने की मांग की थी। समतोला देवी और उनके पति कल्लूमल के नाम पर एक मकान है, जिसमें तीन दुकानें भी हैं। समतोला देवी का कहना था कि कृष्ण कुमार ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया है और वह उन्हें गालियाँ देते हुए बदतमीजी करते हैं। इसी वजह से उन्हें और उनके पति को परेशानियाँ हो रही हैं।

परिवार में संघर्ष और न्यायालय में मामला

SC: यह मामला 2014 में शुरू हुआ था, जब कल्लूमल ने अपने बेटे कृष्ण कुमार पर आरोप लगाया था कि उसने उनके साथ गाली-गलौच की और बदतमीजी की। इसके बाद यह विवाद बढ़ते हुए फैमिली कोर्ट तक पहुँच गया। फैमिली कोर्ट ने इस मामले में आदेश दिया कि कृष्ण कुमार और उसके भाई जनार्दन को हर महीने समतोला देवी और उनके पति को 8000 रुपये की देखभाल भत्ता देना होगा। इसके बाद समतोला देवी और उनके पति ने यह दावा किया कि कृष्ण कुमार को उनके घर से बाहर किया जाए, क्योंकि यह संपत्ति उनके स्वर्गीय पति की खुद की खरीदी हुई थी।

SC का निर्णय: बच्चों के अधिकार और परिवारों के हक

SC ने इस मामले में अपने निर्णय में कहा कि ‘मेंटनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस ऐक्ट’ के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो बच्चों को माता-पिता की संपत्ति से बाहर करने की अनुमति देता हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि परिवार में उत्पीड़न या अपमान का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, जिससे यह साबित हो सके कि कृष्ण कुमार ने अपने माता-पिता का उत्पीड़न किया है। इसके परिणामस्वरूप, अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कृष्ण कुमार को घर से बाहर निकालने का आदेश जारी नहीं किया।

समाज में बदलते परिवारिक मूल्य

SC: यह मामला एक प्रतीक बन गया है, जो यह दर्शाता है कि परिवारों में बिखराव और विवाद अब सामान्य होते जा रहे हैं। एक समय था जब भारतीय परिवारों में संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी, जिसमें सभी सदस्य एक साथ रहते थे और एक-दूसरे के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखते थे। लेकिन आजकल परिवारों का आकार छोटा हो गया है, और कई बार यह देखा जाता है कि बच्चे अपने माता-पिता से अलग रहने का चयन करते हैं, और कई बार रिश्तों में तकरार और समझौता भी होता है।

क्या परिवारों की संरचना बदल रही है?

SC: भारत में परिवारों के बिखरने की प्रक्रिया को लेकर कई विशेषज्ञ चिंतित हैं। वे मानते हैं कि बदलते समय और सामाजिक संरचनाओं के कारण पारंपरिक परिवारों की संरचना में बदलाव आया है। अब अधिकतर परिवारों में न केवल रिश्तों में दूरी बढ़ी है, बल्कि एकल परिवारों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भारत की पारंपरिक ‘परिवार’ की परिभाषा अब बदल रही है?

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